चीन की लैब में तैयार हुआ था कोरोना वायरस


जैविक हथियार को विकसित करने के लिए चीन ने  वैज्ञानिकों को लगा दिया और उसे विकसित करने के लिए वुहान के इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को चुना गया । बताते हैं कि इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने जैविक हथियार बनाने के लिए वुहान से 1600 किलोमीटर दूर यून्नान प्रांत की एक अंधेरी गुफा से बहुत से चमगादड़ों को पकड़ा। जिसके बाद वुहान प्रांत की सरकारी प्रयोगशाली में इस जैविक हथियार को बनाया गया। मगर जब तक चीन इसका इस्तेमाल हांगकांग के प्रदर्शनकारियों पर करता, तब तक इस वायरस ने वुहान की लैब से निकल कर वहान के लोगों पर ही आक्रमण कर दिया, जिसके बाद चीन ने सारी दुनिया को खबर दी कि एक 53 साल की महिला इसके संक्रमण में आ गई । उस महिला से यह वुहान के अनेक लोगों में फैल गया। देखते ही देखते वुहान के लोग इसकी चपेट में आ गए, तो चीन के हाथपैर फूल गए और उसने 5 करोड़ की आबादी वाले वुहान प्रांत में लॉक-डॉउन की घोषणा कर दी। अनाम से वायरस के बारे में जब डब्ल्यूएचओ को जानकारी मिली, तो उसके वैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण में पाया कि चमगादड इस वायरस का वाहक है। दिसंबर 2019 में वुहान के प्रसिद्ध डॉक्टर ली वेनलियांग ने सबसे पहले इस वायरस के बारे में शोध किया और उन्होंने की सारी दुनिया को बताया कि यह वायरस नहीं बल्कि वायरसों का एक परिवार है। डॉक्टर ली वेनलियांग ने अपने मेडिकल कॉलेज के एलुमनी ग्रुप और अपने दूसरे मित्र डॉक्टरों को वी-चैट के माध्यम से इस वायरस के बारे में जानकारी दी। डॉक्टर ली वेनलियांग ने ही सबसे पहले सारी दुनिया के सामने यह बात रखी कि इस वायरस की चेन को आइसोलेशन और क्वारंटाइन द्वारा ही तोड़ा जा सकता है। 35 साल के ली वेनलियांग ने  सारी दुनिया को आगाह किया था कि यह वायरस वैश्विक महामारी के तौर पर फैल सकता है। जनवरी के आखिरी हफ्ते तक यह वायरस सारे वुहान शहर में फैल चुका था। जिसके बाद चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेशन ने इस पर अध्ययन शुरू किया। इसी बीच रहस्यमय परिस्थितियों में इस वायरस की दुनिया को सबसे पहले जानकारी देने वाले डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत की सूचना आई । चीन की सरकार ने बताया कि डॉक्टर ली की मौत 7 फरवरी 2020 की रात 2 बजकर 58 मिनट पर हुई। उन्हें कफ और बुखार की शिकायत थी। दुनिया को जिन व्यक्ति ने सबसे पहले कोरोना के बारे में जानकारी दी थी, उसकी मौत की सूचना से सभी स्तब्ध थे। इसके बाद भी  चीन की सरकार ने इस वायरस के बारे में कोई भी जानकारी अपने देश से बाहर नहीं आने दी। इस प्रकरण के बाद डब्ल्यूएचओ ने इस रहस्यमय वायरस को कोविड-19 नाम दिया, जिससे सारी दुनिया में कोरोना वायरस के तौर पर पहचाना गया।  इस वायरस के वैश्विक प्रभाव के बाद सारी दुनिया अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रही है। अमेरिका में कोरोना के सामुदायिक प्रसार के बाद चीन और अमेरिका के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति अपने संबोधन में कोरोना को चीनी वायरस कहते हैं और अमेरिका का विदेश मंत्रालय इस वुहान वायरस के नाम से संबोधित करता है। अमेरिका के सैन्य विशेषज्ञ, डॉक्टर, वैज्ञानिक और खुफिया तंत्र से जुड़े विशेषज्ञ इसके जैविक हथियार के तौर पर विकसित किए जाने की सघन पड़ताल में जुटे हैं। आज सारी दुनिया जैविक हथियारों के मुहाने पर खड़ी है। दुनिया के अनेक देशों ने अपने यहां जैविक हथियारों को विकसित कर रखा है। यह हथियार सारी मानवता के लिए गंभीर खतरा हैं। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बाद एक बार फिर सारी दुनिया में जैविक हथियारों को लेकर बहस खड़ी हो गई है। दुनिया के कई देशों ने इससे पहले आरोप भी लगाया था कि चीन की एक प्रयोगशाली से कोरोना संक्रमण बाहर आया। तमाम देशों ने यह आरोप भी लगाया कि चीन अपनी प्रयोगशाला में जैविक हथियार बना रहा था, जो कोरोना के रूप में उसके ऊपर ही भारी पड़ गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस वैश्विक महामारी के बाद कहा है कि कोरोना के बाद दुनिया के अनेक देश और आंतकवादी संगठन जैविक हथियारों से मानव सभ्याता का नाश कर सकते हैं। दरअसल जैविक हथियारों को गोला बारूद से नहीं बनाया जाता बल्कि उन्हें प्रयोगशाला में घातक जीवाणु, विषाण, वायरस, फंगस  के तौर पर बनाया जाता है। दुश्मन इनका इस्तेमाल जैविक हमले के तौर पर करते हैं।


मगर दुनियाभर के देशों ने सैन्य संघर्ष के बीच जैविक हथियारों को एक बड़ा अपराध माना है। परमाणु और रसायनिक हथियारों सो भी ज्यादा खतरनाक होते हैं जैविक हथियार, इनसे बड़ी संख्या में नरसंहार होता है एक व्यक्ति से यह हथियार पूरी आबादी को खत्म करने की शक्ति रखते हैं। पारपंरिक हथियारों से जैविक हथियार बनाने की लागत बहुत कम आती है। यह किसी भी सतह अथवा हवा में तीन से दस दिन तक जीवित रह सकते हैं । शुरूआती चरण में इनके हमले को भापना आसान नहीं होता, मगर जल्दी ही जब इनका संक्रमण फैलता है, तो एक बड़ी आबादी इनके प्रभाव में आ जाती है और बड़ी संख्या में मानव बेमौत मौत के मुंह में चले जाते हैं। प्रयोगशाला में जब इनका निर्माण किया जाता है, तो जरा सी चूक में ही यह शोधकर्ता को ही चपेट में ले लेते हैं। जैसे कोरोना के बारे में कहा जा रहा है। इसी तरह से इबोला के बारे में भी कहा जाता था।  सबसे चिंताजनक बात यह कि जैविक हथियारों की पहचान बेहद मुश्किल होती है। इसके प्रभाव से उबारने में किसी भी देश को बहुत वक्त लगता है। इनका इस्तेमात किसी भी रूप में किया जा सकता है । खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर, वातावरण तक में और फसलों तक के जरिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है । शत्रु इन्हें पोस्टल, कपड़े, दवाई, या अन्य किसी दूसरे तरीके से भेज कर लाखों लोगों को संक्रमित करने की ताकत रखता है


दुनियाभर में तबाही और प्रलय मचाने वाले कोरोना वायरस के सामने बड़े-बड़े चिकित्सा वैज्ञानिक और मेडिकल संस्थानों के डॉक्टर पस्त हो गए। दुनिया का कोई भी देश इस रहस्यमय वायरस का टीका नहीं खोज पाया। किसी ने इसका आधार चमगादड़ को बताया, तो किसी न कहा कि चीन के वुहान शहर के मीट बाजार से यह वायरस दुनियाभर में फैल गया। मगर जब दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका कोरोना की चपेट में आया, तो उसके वैज्ञानिकों डॉक्टरों और जासूसों की पूरी टीम ने इसकी खोज करनी आरंभ कर दी कि आखिरकार इस वायरस का आधार क्या है, जहां से यह सारी दुनिया में फैलता चला गया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो सीधे-सीधे चीन पर इस वायरस को दुनिया में फैलाने का आरोप लगाया। मगर अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने स्पष्ट शब्दों में आरोप लगाया कि कोरोना वायरस चीन की लैब में तैयार किया गया था। चीन ने वुहान स्थित अपनी सरकारी लैब नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ वायरोलॉजी लैब में इस वायरस को विकसित किया था। दरअसल चीन कोरोना के बारे में कोई भी सही जानकारी पूरी दुनिया और डब्ल्यूएचओ को देने में नाकाम रहा था। चीन ने पहले इस वायरस के बारे में सभी जानकारियों को छिपाने का काम किया। अमेरिका के विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल कोरोना को चीन ने वुहान स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में जैबिक आधार पर विकसित किया, जिसका मकसद इसे जैविक हथियार के तौर पर हांगकांग के प्रदर्शनकारियों पर इस्तेमाल करना था । अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हांगकांग ने चीन में जो प्रतिबंध लगाए थे, उनके खिलाफ वहां का समूचा जनमानस सड़कों पर उतर आया था। चीन की सेना और पुलिस का हांगकांग में भारी विरोध हो रहा था। हालात इतने खराब हो गए थे कि छह महीने से हांगकांग में सभी व्यापारिक और प्रशासनिक गतिविधियां ठप्प हो गई थी। फिर भी चीन पूरी शक्ति के साथ हांगकांग में प्रदर्शनकारियों पर सख्ती कर रहा था। चीनी पुलिस, सेना और वहां की खुफिया एजेंसियों ने देखा कि किसी भी हालात में हांगकांग के प्रदर्शनकारियों पर पार नहीं पाया जा सकता। दूसरी तरफ सारी दुनिया में चीन की इस बात को लेकर घनघोर आलोचना हो रही थी कि चीन हांगकांग में प्रदर्शनकारियों को बहुत सख्ती के साथ कुचल रहा है, जो मानवाधिकारों का खुला उलघंन है। चीन की साम्यवादी सरकार हांगकांग को लेकर इतनी चिंतित हुई कि उसने हांगकांग के प्रदर्शनकारियों पर जैविक हथियार का इस्तेमाल करने की चाल को अंजाम देना स्वीकार कर लिया। चीन की सरकार का मानना था कि जैविक हथियार से प्रदर्शनकारियों के हौसले पस्त हो जाएंगे और बहुत से प्रदर्शनकारी अनाम सी बीमारी की वजह से मारे जाएंगे और बहुत हद तक लोग संक्रमित हो जाएंगे, जिसके बाद वहां शांति स्थापित हो जाएगी।