नागरिकता कानून पर विवाद

रिपोर्ट - बिशन गुप्ता


देश की सर्वोच्च अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। इससे एक हद तक उस प्रचार की हवा निकल गई है, जिसके तहत यह फैलाया जा रहा था कि यह कानन संविधान विरोधी है और सुप्रीम कोर्ट में कहीं नहीं टिकेगा। अब जब देश की सर्वोच्च अदालत में नागरिकता कानून की संवैधानिकता की परख हो गयी है, तो उसके विरोध के क्या मायने हैं? ऐसे में अब यही उचित होगा कि इस कानून का विरोध करने के नाम पर हिंसक प्रदर्शन करने वालों को बाज आ जाना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे राजनैतिक दलों और संगठनों को भी सोचना चाहिए, जो संविधान, लोकतंत्र और न्याय की दुहाई देकर अपने हित साधने में लगे हुए हैं और देश को अनावश्यक हिंसा की आग में झोंक रहे हैं। हालांकि सरकार की ओर से लगातार यह कहा जा रहा है कि यह कानून देश के लोगों के लिए नहीं है। इससे उन लोगों को नागरिकता मिलेगी, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सताये हुए अल्पसंख्यक है, जो भेदभाव और असुरक्षा के चलते भारत आना चाहते हैं या फिर पहले से ही भारत में शरण लिए हुए हैं। लेकिन लोगों की अज्ञानता का लाभ उठाकर कुछ लोग उन्हें भड़काने में लगे हुए हैं और खून खराबे की बुनियाद पर अपने सहूलियत की राजनीति कर रहे हैं। इस राजनीति के तहत सुनियोजित तरीके से झूठ फैलाया जा रहा है। कोई एनआरसी को नागरिकता कानून का हिस्सा बताने में जुटा है, तो कोई उसे धार्मिक आधार पर नागरिकों की पहचान की कवायद साबित करने की कोशिश कर रहा है। इसे शरारतपूर्ण के अलावा और कुछ नहीं कहा जाएगा, क्योंकि अभी असम को छोड़कर देश के किसी दूसरे हिस्से में एनआरसी की कोई प्रक्रिया ही शुरू नहीं की गई है। प्रधानमंत्री मोदी भी स्पष्ट कर चुके है कि एनआरसी अभी सरकार के एजेंडे में नहीं है। नागरिकता कानून को लेकर अभी सरकार को और अधिक सक्रियता दिखाने की जरूरत है, ताकि लोग इस कानून को भलीभांति समझ सकें, और इस कानून के बारे में जो अनर्गल बातें फैलाई जा रही हैं, उन्हें दूर किया जा सके, क्योंकि कुछ राजनैतिक पार्टियां और संगठन लोगों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हैं। यही कारण है कि नागरिकता कानून पर विरोध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस बात को इसी संकेत से समझा जा सकता है कि नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ज्यादातर याचिकाएं राजनैतिक दलों और उनके नेताओं के द्वारा दायर की गयी हैं।