ज़हरीली हुई दिल्ली

रिपोर्ट -बिशन गुप्ता


राजधानी दिल्ली इन दिनों गैस चैम्बर में बदल गयी है। दिल्ली और एनसीआर की हवा में जहर घुलता ही जा रहा है। यहां लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत आ रही है। सड़कों पर जिधर देखो, लोग एयर फ़िल्टर मास्क लगाये नजर आ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे लोगों ने एयर फ़िल्टर मास्क से दोस्ती कर ली हो और अब मास्क लगाये बिना उनका गुजारा नहीं होने वाला। एयर फ़िल्टर मास्क बनाने और बेचने वालों की भी चांदी कट रही रही है। बीते कुछ दिनों का एयर क्वालिटी इंडेक्स देखें, तो स्थिति खतरनाक स्तर तक पहुंच गयी है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एजेंसी ने वायु प्रदूषण का संज्ञान लेते हुए इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेन्सी घोषित कर दिया है। हालत बिगड़ते देख पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण यानि ईपीसीए ने दिल्ली एनसीआर में नवंबर महीने में कुछ दिनों तक सभी स्कूल बन्द करने के आदेश दिये । सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गयी । इसके अलावा अगले आदेश तक पटाखे जलाने पर भी रोक लगा दी गयी है। ईपीसीए ने दिल्ली हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर प्रदूषण से निपटने के लिए जरूरी उपाय करने को कहा है। ईपीसीए ने कहा है कि राजधानी दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर हो चुका है। इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसके मद्देनजर लोगों को सलाह दी जाती है कि वो बिना जरूरी काम के घर से बाहर ना निकलें। सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायर्मेन्ट (सीएसई) की रिपोर्ट के मुताबिक, दीपावली और इसके आसपास के समय छोड़े गये पटाखों , हरियाणा, पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने की घटनाओं ने स्थिति को ज्यादा खराब किया है । अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी दिल्ली से लगे राज्यों की सेटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जिसमें खेतों में पड़ी पराली में लगाई आग को दर्शाया गया है। नासा का कहना है कि बीते कुछ दिनों में हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में बद्धि हई है। यहां करीब 3000 डाट देखे गये है जिनका मतलब है कि अभी कुछ समय के दौरान ३००० किसानों ने पराली जलाई है और यही कारण है कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदषण खतरनाक स्तर पर पहंच गया है। इसी बीच डब्लएचओ की एक रिपोर्ट आई है. जिसके नतीजे खतरनाक हालात को बयां करते हैं। स्टडी से पता चला है कि यह प्रदूषण हमारी जिंदगी के १० साल तक कम कर रहा हैवहीं वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाली संस्था एयर विजुअल के अनुसार, दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में राजधानी दिल्ली इस समय पहले नम्बर पर है। हालांकि दिल्ली सरकार ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए फ़ौरी तौर पर उपाय शुरू कर दिये है। दिल्ली सरकार मोहल्ला क्लीनिकों के माध्यम से राजधानी के सभी क्षेत्रों में एयर फ़िल्टर मास्क बंटवा रही है। दिल्ली में ट्रैफ़िक के लिए ऑड ईवन सिस्टम भी लागू किया गया । केजरीवाल ने कहा है कि वो दिल्ली के लोगों की सेहत को लेकर चिंतित हैं और आगे भी आवाश्यक कदम उठायेंगे।


उधर राजधानी दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर राजनीति भी शुरू हो गयी है। केजरीवाल सरकार दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का ठीकरा पंजाब - हरियाणा में किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली पर फ़ोड़ रही है। केजरीवाल का कहना है कि कि हरियाणा और पंजाब सरकार की कारगुजारियों की सजा दिल्लीवालों को भुगतनी पड़ रही है। इसके लिए उन्होंने भाजपा और कांग्रेस से जवाब मांगा है। गौरतलब है कि हरियाणा में भाजपा और पंजाब में कांग्रेस सरकार है। वहीं भाजपा ने केजरीवाल सरकार को सलाह दी है कि वो राजनीति करने के बजाय राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए उपाय करें। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि केजरीवाल इतने गंभीर मुद्दे पर भी राजनीति कर रहे हैं। जावड़ेकर ने कहा कि दिल्ली सरकार ने ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के लिए अभी तक ३५०० करोड़ रूपये नहीं दिये है, जिसके बनने के बाद दिल्ली में प्रदूषण काफ़ी कम हो सकता है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसे ही आरोप प्रत्यारोप चलते रहे तो कई बातें निकलकर सामने आएंगी। इस समय प्रदूषण से लोगों को राहत दिलाना सभी की जिम्मेदारी है ,इसलिए मैं अपील करता हूं कि हरियाणा और पंजाब पर आरोप लगाने के बजाय, पांचों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बैठकर इस समस्या का समाधान निकालने के प्रयास करने चाहिए। उधर राजस्थान के मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का असर अब राजस्थान में भी दिखने लगा है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि २०१६ से २०१८ के बीच दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने में ४१ प्रतिशत की कमी आयी है। साथ ही दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण के पीछे पराली का जलाना सबसे बड़ा कारण है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पराली जलाने के मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। सवाल यह है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है ? केन्द्र सरकार , दिल्ली सरकार या फ़िर दिल्ली के पडोसी राज्य।  क्या पराली और पटाखे जलने की वजह से ही दिल्ली में अचानक प्रदूषण बढ़ गया या इसके पीछे और भी कारण हैं? ज़हरीली हवा लोगों की सांसों में घुल रही है और सरकारें एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि सरकारें राजनीति बन्द करके एक ऐसा प्लान बनाएं, जिससे पॉल्यूशन को खत्म करने का असली सोल्यूशन निकले।


 पराली जलाने को क्यों मजबूर हैं किसान ?


पराली जलाने के मसले पर एक बार फ़िर हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दिल्लीवालों के निशाने पर हैं। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। किसानों का तर्क है कि एक तो वैसे ही उन्हें आमदनी नहीं होती है। फ़िर हम पराली को नष्ट करने में ज्यादा पैसा क्यों लगाएं, जब एक माचिस की तीली से ही उनका काम आसानी से हो जाता है ,तो दूसरी ओर पर्यावरणविद और दिल्ली के लोगों का कहना है कि किसानों के किये की सजा प्रदूषण के रूप में वो क्यों भुगतें? उनका कहना है कि उनकी बात कोई सुनने को राजी नहीं है और वो दमघोटू  हवा में जिन्दगी जीने को मजबर है. केन्द्र और राज्य सरकारें बस ब्लेमगेम खेलने में मशगूल हैं , लेकिन इससे क्या हासिल होगा? पिछले कई सालों से इस बात पर बहस हो रही है कि बिना जलाये पराली को कैसे नष्ट किया जाये, लेकिन मामला सिर्फ ढाक के तीन पात ही रहा। किसान नेता विजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि पराली की जड़ काटने के काम को जब तक मनरेगा के तहत नहीं लाया जाएगा, इसका समाधान नहीं हो सकताक्योंकि तंगहाल ज़िन्दगी जी रहे किसान को कोई काम अगर फ्री में करने को मिलेगा तो वो उसके लिए पैसा खर्च नहीं करेगा। सरकार को अगर वास्तव में किसानों को पराली जलाने से रोकना है, तो डंडे से काम लेना बन्द करना होगा। सरकारों को चाहिए कि वो किसानों को विश्वास में लेकर उनकी काउंसलिंग करवायें और उन्हें पराली को नष्ट करने के सस्ते या फ़िर बिना खर्च के उपाय सुझाएं। चौधरी कहते हैं कि धान की फ़सल पर पहले ही बहत अधिक खर्च आता है अगर सरकार के बताये तरीके से पराली नष्ट करने के लिए मशीन का इंतजाम कर भी लिया जाये, तो भी प्रति एकड़ ५-६ हजार रूपये का खर्च आता है, उसे कौन वहन करेगा। दरअसल जब से धान की फ़सल मशीन से कट रही है, तब से यह समस्या ज्यादा गहरा गयी है। मशीन एक फ़िट ऊपर से धान का पौधा काट देती है। जो शेष भाग बचता है, वो किसान के लिए समस्या बन जाता है। किसान उसे कटवाने के बजाए जला देता है। हालांकि देश के कृषि वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए एक मशीन तैयार की है। इसका नाम पेड्डी स्ट्रा चौपर है। इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड दिया जाता है। यह पराली के छोटे-छोटे टकडे करके परे खेत में फैला देती है। बारिश होते ही पराली के टुकड़े सड़-गलकर खाद बन जाते हैं। हालांकि इस मशीन पर सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है, लेकिन मशीन महंगी होने के चलते किसान इसे नहीं खरीद पाते। ऊपर से दलालों और सरकारों की निष्क्रियता के चलते किसानों को मशीन पर मिलने वाली सब्सिडी नहीं मिल पाती । यही कारण है कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं नहीं रुक रही हैं।


केजरीवाल, मुख्यमंत्री दिल्ली - हरियाणा और पंजाब सरकार की कारगुजारियों की सजा दिल्लीवालों को भुगतनी पड़ रही है। इसके लिए  भाजपा और कांग्रेस जवाब दें। दिल्ली सरकार मोहल्ला क्लीनिकों के माध्यम से राजधानी के सभी क्षेत्रों में एयर फ़िल्टर मास्क बंटवा रही है। दिल्ली में ट्रैफ़िक के लिए ऑड ईवन सिस्टम भी लागू किया गया।  हम दिल्ली के लोगों की सेहत को लेकर चिंतित हैं और आगे भी आवाश्यक कदम उठायेंगे।


प्रकाश जावड़ेकर, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री - केजरीवाल इतने गंभीर मुद्दे पर भी राजनीति कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के लिए अभी तक ३५०० करोड़ रूपये नहीं दिये है, जिसके बनने के बाद दिल्ली में प्रदूषण काफ़ी कम हो सकता है।


विजेन्द्र चौधरी , किसान नेता - पराली की जड़ काटने के काम को जब तक मनरेगा के तहत नहीं लाया जाएगा, इसका समाधान नहीं हो सकता। क्योंकि तंगहाल ज़िन्दगी जी रहे किसान को कोई काम अगर फ्री में करने को मिलेगा तो वो उसके लिए पैसा खर्च नहीं करेगा। सरकार को अगर वास्तव में किसानों को पराली जलाने से रोकना है, तो डंडे से काम लेना बन्द करना होगा। सरकारों को चाहिए कि वो किसानों को विश्वास में लेकर उनकी काउंसलिंग करवायें और उन्हें पराली को नष्ट करने के सस्ते या फ़िर बिना खर्च के उपाय सुझाएं।