हुड्डा की टीस

रिपोर्ट -सतीश कौशिक 



 हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में, जब राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पहुंचे तो उनका दर्द चेहरे पर छलक आया। इस दौरान हुड्डा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगर प्रदेश कांग्रेस में बदलाव कुछ समय पहले हो गया होता, तो हरियाणा के नतीजे कुछ और होते। उन्होंने कहा, चुनाव से १५ दिन पहले ही संगठन में बदलाव हुआ, जिसके चलते पार्टी को विधान सभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला। गौरतलब है कि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ३१ सीटें मिली हैं, जबकि उसके कई उम्मीदवार बहुत ही कम मार्जिन से चुनाव हारे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि कांग्रेस आलाकमान ने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर भरोसा जताने में कहीं देर तो नहीं कर दी, जिसका खामियाजा पहले लोकसभा और अब विधानसभा चुनाव में पार्टी को उठाना पड़ा है। जबकि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा राज्य में २०१४ में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने की मांग करते रहे। लेकिन पार्टी ने उनकी एक नहीं मानी। हालांकि इसके बाद भी हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा एक बार फ़िर कांग्रेस के लिए संजीवनी बनकर उभरे हैं। हरियाणा की ९० विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ३१ सीटें जीतने में सफ़ल रही है। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस को महज १५ सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस तरह से हुड्डा इस बार कांग्रेस की सीटें दुगुनी से भी ज्यादा करने में सफल रहे हैं। दरअसल हरियाणा कांग्रेस में काफ़ी समय से गुटबाजी चल रही थी। राज्य में पार्टी कई गुटों में बंटी थी, जिसका लोकसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद पार्टी में गुटबाजी सतह पर आ गयी। इसी का नतीजा रहा कि राज्य के कद्दावर नेता रहे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कई बार पार्टी लाइन से हटकर बयान दिये। अपनी ताकत दिखाने के लिए उन्होंने रोहतक में एक बड़ी रैली की, जिसमें उनके समर्थक नेता, विधायक शामिल हुए हुड्डा ने इस रैली के जरिए पार्टी आलाकमान को यह संदेश देने की कोशिश की कि वो अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं। इसके बाद पार्टी आलाकमान सक्रिय हुआ और पार्टी ने हरियाणा में हुड्डा के विरोधी अशोक तंवर को हटाकर कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को हरियाणा चुनाव समिति के अध्यक्ष के साथ ही सीएलपी का नेता भी बनाया गया। लेकिन ये निर्णय राज्य में विधानसभा चुनाव के ऐलान से महज १५ दिन पहले लिया गया। हुड्डा का कहना है कि पार्टी आलाकमान ने समय रहते अगर उनकी मान ली होती, तो हरियाणा में आज कांग्रेस की सरकार होती। हुड्डा के मन में यह भी टीस है कि पार्टी आलाकमान ने अपने स्तर से जजपा को साथ लाने की कोशिश की होती, तो आज जजपा भाजपा के पाले में नहीं होती। शपथ ग्रहण समारोह से बाहर निकलते ही उन्होंने जजपा के दुष्यंत चौटाला पर भी तंज कसा, कि वोट किसी की और सपोर्ट किसी और को। उनका साफ़ इशारा था कि हरियाणा की जनता ने किसी जाट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्हें इतनी सीटें दी हैं , लेकिन वो जनादेश का अपमान करके भाजपा की गोद में बैठ गये। हालांकि उन्होंने यह इशारा भी कर दिया कि भाजपा-जजपा का बेमेल गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा और यह सरकार समय से पहले ही गिर जाएगी।