हरियाणा में भाजपा-जजपा सरकार - इनसाइड स्टोरी

रिपोर्ट -सतीश कौशिक 



हरियाणा में अन्तत: भाजपा-जजपा सरकार बन गयी। लेकिन लोगों के मन में अब भी यह सवाल कौंध रहा है कि बहुमत का जुगाड़ होते हुए भी आखिर क्यों भाजपा ने जजपा को सरकार में साझेदारी दी और साथ ही दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री जैसा अहम पद दिया। हालांकि इसके पीछे बहुत से लोग यह तर्क दे रहे हैं कि दूसरी स्थिति में बहुमत का जुगाड़ करने के लिए उसे गोपाल कांडा का समर्थन लेना पड़ता, जिससे उसकी काफ़ी छीछालेदर होती। लेकिन इसके लिए मैं आपको बता दूं कि जजपा और गोपाल कांडा के बिना भी भाजपा को कुल ४८ विधायकों का समर्थन प्राप्त था, जबकि बहुमत के लिए उसे केवल ४६ विधायकों की ही जरूरत थी। ऐसे में भाजपा ने जजपा के साथ गठबंधन की सरकार क्यूं बनाई, तो इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी हम आपको बताते हैं।


दरअसल जैसे-जैसे रिजल्ट आ रहे थे, भाजपा के आलाकमान को उम्मीद थी कि राज्य में भाजपा को सामान्य बहुमत मिल जाएगा। लेकिन पूरे रिजल्ट आने के बाद भाजपा आलाकमान सचेत हो गया और कई सूत्रों के द्वारा बहुमत का जुगाड़ किया जाने लगा। पंजाब से प्रकाश सिंह बादल और सुखवीर सिंह बादल को लगाया गया, ताकि वो जजपा और इनेलो को साध सकें। उधर हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और राज्य के कई सांसद और मंत्री निर्दलीय विधायकों को साधने में लग गये। सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल के जरिये गोपाल कांडा को साधा गया। इसके बाद गोपाल कांडा ने कई और निर्दलीय विधायकों को साधा। गोपाल कांडा इससे पहले भी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के लिए बहुमत का जुगाड़ कर चुके थे। अभी चुनाव परिणामों को आये कुछ ही घंटे बीते थे कि तकरीबन ९ विधायक भाजपा के पाले में आ चुके थे और कुल मिलाकर अब भाजपा को ४९ विधायकों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन तभी खुद भाजपा में गोपाल कांडा से समर्थन लेने को लेकर विरोध के स्वर उठने लगे। भाजपा की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने तो मीडिया के सामने आकर खलकर अपना विरोध जताया। कांग्रेस ने भी गोपाल कांडा के समर्थन पर भाजपा को खूब लताड़ लगाई।


 उधर जब कांग्रेस को लगा कि अब भाजपा के पाले में बहुमत से भी अधिक विधायकों का जुगाड़ हो गया है, तो उसने सरकार बनाने की उम्मीद छोड़ दी।  उससे पहले कांग्रेस दुष्यंत चौटाला से डील करने के लिए हर तरह से तैयार थी, यहां तक कि उसे कर्नाटक वाला  फ़ार्मूला भी मंजूर था। यानि वो १० सीटों वाले दुष्यंत चौटाला को राज्य का मुख्यमंत्री भी बनाने को तैयार थी। लेकिन गोपाल कांडा पर विरोध के चलते भाजपा के रणनीतिकार एक दूसरी योजना पर भी काम कर रहे थे। वो योजना थी, जजपा के दुष्यंत चौटाला को अपने पाले में लाने की। इसके लिए अनुराग ठाकुर और सुखवीर बादल लगे हुए थे। भाजपा आलाकमान को लग रहा था कि राज्य में भले ही भाजपा को बहुमत का जुगाड़ हो गया हो ,लेकिन इसके बावजूद दुष्यंत चौटाला को सरकार में शामिल करना नुकसान का सौदा नहीं है। भाजपा को इसमें कुछ दूरगामी फ़ायदे नजर आ रहे थे। एक तो जो राज्य में उसकी जाट विरोधी छबि बन गयी है, दुष्यंत के साथ आने के बाद वो टूट जाएगी और राज्य ही नहीं देश के जाट मतदाताओं में इसका अच्छा मैसेज जाएगा। इससे दूसरे राज्यों के जाट मतदाता जो उससे छिटक गये हैं, वो भी उसके पाले में आ सकते हैं। इसके साथ ही कुछ दिनों बाद राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां जाट मतदाताओं की संख्या काफ़ी है, ऐसे में उसे उनके समर्थन की भी दरकार होगी। भाजपा जानती है कि दिल्ली के हर वर्ग को उसे संतुष्ट करना होगा, तभी वो दिल्ली में केजरीवाल को चुनौती दे पाएगी। उसे यह भी पता है कि दिल्ली भले ही छोटा केन्द्र शासित प्रदेश क्यूं न हो, लेकिन वहां केजरीवाल से मुकाबला उसकी नाक का सवाल है। देश की राजधानी होने के चलते इसका मैसेज दुनिया भर में जाता है। इन सब बिन्दुओं को देखने के बाद ही भाजपा की ओर से दुष्यंत को उपमुख्यमंत्री पद का ऑफ़र दिया गया। उधर अब दुष्यंत को भी पता था कि उनके बिना भी राज्य में भजपा की सरकार बन रही है। ऐसे में उपमुख्यमंत्री और कुछ मंत्री पद जजपा को मिल जायें, तो यह नुकसान का सौदा नहीं है। अन्यथा यह भी हो सकता है कि सत्ता से दूर रहने पर जजपा टूट भी सकती है। लिहाजा दुष्यंत चौटाला बेहिचक भाजपा के पाले में चले गये .