स्वच्छ वातावरण ही स्वस्थ जीवन की कुंजी : डॉ. विवेक शर्मा

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बहुत खराब है। देशभर में कुशल चिकित्सकों की भारी कमी है। सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है कि देश के हर नागरिक को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा मिले, मगर जमीनी स्तर पर यह काम पूरा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में देश में बहुत से कुशल चिकित्सक ऐसे भी है जो अपने स्तर से आम जनता तक बेहद मामूली शुल्क में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। 'अराइज न्यूज' ने दिल्ली के जाने माने बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विवेक शर्मा से इस संबंध में बात की है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है और खासतौर पर बच्चों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं देश में कैसी होनी चाहिए। पेश है डॉक्टर विवेक शर्मा से हुई बातचीत के प्रमुख अंश


-  डॉक्टर विवेक शर्मा 


देश में स्वास्थ्य सेवाओं की दशा को कैसे सुधारा जा सकता है ताकि आम आदमी तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ पहुंच सके?


देखिए, हमें सबसे पहले इस क्षेत्र में कई बदलावों को करना होगा। बदलाव जब तक नहीं होंगे, तब तक देश के हर हिस्से में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर नहीं किया जा सकता। सरकारी स्तर पर यह प्रयास होना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज ग्रामीण क्षेलों में खोले जाएं। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभावान छात्रों को वहीं प्रवेश दिया जाए। अगर अपने इलाके में डॉक्टरी की पढ़ाई सस्ती दर पर हमारे देश के युवाओं को उपलब्ध होगी, तो वे डॉक्टर बनने के बाद अपने इलाके के लोगों की ही सेवा करेंगेसरकार को यह प्रयास करना चाहिए कि देश के पिछडे इलाकों में मेडिकल शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की जाए। मेडिकल में प्रवेश के मानकों में थोड़ा बहुत बदलाव किया जाए, ताकि गरीब प्रतिभावान छात्र भी चिकित्सा जैसी महंगी पढ़ाई को पूरा कर सके। मेरा मानना है कि मेडिकल के पाठ्यक्रम में बदलाव करने या मेडिकल के पाठ्यक्रम को छोटा करने से यह समस्या हल नहीं होगी। बल्कि सरकार को तेजी से स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा धन आवंटित करना होगा, . तभी हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं को हम आम आदमी तक आसानी से पहुंचा पाएंगे। डॉक्टर साहब, हमारे देश में बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति बहुत खराब है। इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?


वास्तव में अगर हम अपने देश के नौनिहालों के जीवन को संरक्षित करेंगे ,तो हम देश का भविष्य बीमारी से मुक्त करने में कामयाब होंगे। बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार राष्ट्रीय टीकाकरण जैसे कार्यक्रम चला रही है। मेरा मानना है कि इस कार्यक्रम में सरकार को जापानी बुखार, दिमागी बुखार और दूसरी खतरनाक बीमारी के टीकाकरण को भी शामिल करना चाहिए, तभी हम देश के आने वाले भविष्य को बीमारियों से सुरक्षित कर पाएंगे।


छोटे बच्चों में बीमारियों ज्यादा होती है। उनकी देखभाल के लिए क्या-क्या बातें मुख्य है, जिनसे बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सके?


जी हां, छोटे बच्चों को बीमारी ज्यादा होती हैं, खासतौर पर नवजात शिक्षुओं को सांस संबंधी बीमारी, त्वचा संबंधी बीमारी और बुखार जैसी घातक बीमारियां ज्यादा होती हैं। हम अगर कुछ अहम बातों का ख्याल रखें, तो बच्चों को इन जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकता है । देखिए, बच्चों को जब भी बुखार की समस्या हो तो पहले उनके शरीर को ठंडे पानी से पोंछना चाहिए। जहां बच्चा रहता है, वहां साफ सफाई और ताजी हवा का होना जरूरी है। अगर बच्चे में सांस की समस्या दिखाई दे रही है, तो उसे धूल-मिट्टी जैसी जगहों से दूर रखना चाहिए और तत्काल डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। बच्चों को छह माह तक कोई भी बाहरी पदार्थ का सेवन नहीं कराना चाहिएकुछ माता बच्चों को शहद चटा देती हैं, जो उनके लिए घातक हो सकता है। क्योंकि शहद को नवजात पचा नहीं पाताकम से कम छह माह तक मां का दूध नवजात को पिलाना चाहिए। मां का दूध बच्चे के लिए अमृत है। अगर दूध नहीं उतर रहा, तो डॉक्टर द्वारा बताए गए डिब्बाबंद दूध का इस्तेमाल किया जा सकता है। आजकल डिब्बाबंद दूध में पोष्टिक तत्वों का समावेश रहता है।


छोटे बच्चों को बीमारियों की प्रमुख वजह क्या होती है?


नवजात को ज्यादातर बीमारियां उसके मांबाप से ही मिलती है यानि अनुवांशिक होती है। अगर मां में कोई बीमारी है, तो वह नवजात में आ जाती है। इसलिए गर्भवती माताओं को किसी भी तरह की बुरी आदतों से दूर रहना चाहिए, ताकि शिशु पर उसका असर न पड़े। माता पिता से नवजात को ज्यादातर बीमारियों का खतरा रहता है लिहाजा बच्चे के स्वास्थ्य के लिए माता का टीकाकरण किया जाता है, ताकि बच्चा स्वस्थ्य पैदा हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में बड़ी तादात में नवजात बच्चों को फेफड़े की बीमारी होती है। यह बहुत घातक है। इसकी रोकथाम के लिए सरकार भी कदम उठा रही है, मगर हमें भी इसके प्रति सजगता बरतनी होगी।


आपने बतया कि देश में नवजात बच्चों को फेफड़ों की बीमारियां ज्यादा हो रही है और यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। इसकी वजह क्या है?


हमारे देश में तेजी से बदलती जीवन शैली, शहरों और महानगरों में बदतर होता प्रदूषण, खराब होती ताजी हवा, पीने का पानी और हमारे आसपास साफ सफाई का अभाव । अब भारत में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान प्रदूषण के कारण और उसके बचाव को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। हमारे देश में प्रदूषण की समस्या बहुत विकट होती जा रही है। अगर इसे नहीं सुधारा गया तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसका बुरा असर देखने को मिलेगा। हालांकि पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत सरकार ने साफ-सफाई के लिए देशभर में व्यापक अभियान चला रखा है। इस अभियान को हमें गांव-गांव और गली-गली तक ले जाना होगा, ताकि हमारा वातावरण साफ सुंदर रहे। हमारा वातावरण जब स्वच्छ और साफ होगा, तो बच्चों को फेफड़ों की गंभीर बीमारियों का सामना नहीं करना होगा। आज की स्थिति यह हो गई है कि दिल्ली जैसे महानगर जो देश की राजधानी है, एक गैस चेंबर में तब्दील होती जा रहे है। फिर जब हम सांस नहीं ले पाएंगे, तो सोचिए क्या हाल बच्चों का होगा। छोटे बच्चों पर वातावरण की अशुद्धता का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। इसलिए देश में नवजात बच्चों के बीच फेफड़ों की बीमारियों की संख्या बढ़ रही है। सरकार के साथ हमें भी प्रदूषण के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाना होगा।


डॉक्टर साहब, भारत में चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया गया है, मगर आज चिकित्सक इतने महंगे हो गए हैं कि गरीब आदमी उनकी सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाता और झोलाछाप डॉक्टरों के चकर में फंस कर अपने स्वास्थ्य को जोखिम में डाल देता है? 


हां, यह बात तो अवश्य है कि देश में स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हैं। दवाएं महंगी हैं, चिकित्सीय जांच की मशीनें और उपकरण बहुत महंगे हैं, आबादी के हिसाब से कुशल चिकित्सक भी उपलब्ध नहीं हैं। मगर इसके लिए चिकित्सक जिम्मेदार नहीं है। वह दवाईनहीं बनाते, बल्कि दवाई का नाम सुझाते हैं। फिर भी देश में बहुत से कुशल चिकित्सक बहुत मामूली दरों पर लोगों का इलाज कर रहे हैं और उन्हें बेहतर सुविधाएं भी दे रहे हैं । मेरा यह सुझाव है कि सरकार दवाईयों को सस्ती करे, महंगे चिकित्सीय उपकरणों पर छूट  दे, महंगी जांच मशीनों पर टैक्स कम लगाए और विदेशों से मशीनों को देश में बिना टैक्स के आने की स्वीकृति दे, तभी डॉक्टर अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं को दे सकेंगे। रही बात झोलाछाप डॉक्टरों की, तो उनके पास जाकर अपनी जान को जोखिम में डालना तो है ही, साथ ही अपना समय और धन भी बर्बाद करना है। मैं यह बात नहीं मानता, कि स्वास्थ्य सेवाओं के महंगे होने का जिम्मा चिकित्सकों पर है, इसके बहुत से दूसरे कारण हैं।


देश में स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक कैसे सस्ते और बेहतर तरीके से पहुंचाया जा सकता है, इस संबंध में आपके क्या सुझाव है?


देखिए, भारत व्यापक समस्याओं वाला देश है। सरकार ने वैसे चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक चिकित्सा को बढ़ावा देने का काम किया है, मगर इसे और ज्यादा व्यापक बनाना होगा। आज मेडिकल सेवा निजी हाथों में जा रही है। मेडिकल कॉलेज निजी क्षेत्र में जा रहे हैं, जहां केवल बहुत अमीर व्यक्ति के बच्चे ही प्रवेश पाते हैं । गरीब बच्चा अगर प्रतिभावान है, तो भी वह निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं ले सकता। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस संबंध में भारत सरकार को बहुत सुझाव दिए हैं। उन पर अमल होना जाहिए। सरकारी स्तर पर आयुर्वेद, होम्योपैथ और एलोपैथी के साथ अन्य सहायक चिकित्सा शिक्षा की व्यवस्था को ग्रामीण स्तर पर तेजी से लागू करना होगा, तभी देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाया जा सकता है।


आम आदमी की स्वास्थ्य सेवाओं को अच्छा बनाने में क्या भूमिका हो सकती है?


देश के आम आदमी की भागीदारी के बाद ही हम देश से पोलियो जैसी खतरनाक बीमारी को समाप्त कर पाए। आम आदमी अगर मौसमी बीमारियों, प्रदूषण, साफ सफाई, गंदगी और जीवन शैली को लेकर सचेत रहे और जागरुक रहे, तो बहुत हद तक स्वस्थ्य जीवन गुजार सकता है। हर डॉक्टर चाहता है कि बीमारियों की रोकथाम के लिए उसे लोगों का सहयोग मिले, लोग जागरुक रहें कि अगर हम गंदगी करेंगे और प्रदूषण के कारण बनेंगे, तो हमारे बच्चों को तरह-तरह की बीमारियों से ग्रस्त होना पड़ेगा। डॉक्टरों और सरकार के भरोसे स्वास्थ्य सेवाओं को अच्छा नहीं किया जा सकता। इसके लिए आम आदमी की भागीदारी जरुरी है। जब हम सब यह जिम्मेदारी समझेंगे, तभी हम देश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर पाएंगे।


चाइल्ड केयर क्लीनिक


डॉ. विवेक शर्मा,नियर प्राइमरी स्कूल मेनरोड मंडावली, दिल्ली-92