होता है पुनर्जन्म ?

ऐसे किस्से चकित करते हैं लोगों को। दिमाग कहता है कि यह सब झूठ है लेकिन जब वाकये  सामने होते हैं तो न सिर्फ दिल, बल्कि दिमाग भी इस सच से दो चार होता ही है, सच्चाई तो सच्चाई होती है, छुपती नहीं छुपाने से। पुनर्जन्म का यह सच्चा किस्सा है, यकीन नहीं तो पढ़ लो पूरी कहानी...


                     


राजेंद्र शर्मा                  उनकी पूर्व जन्मकी पत्नी सुनहरी देवी                                                                                                                                                                            और बेटा महेंद्र प्रताप।


 


           


राजेंद्र शर्मा उर्फ रघुवीरसिंह के              रघुवीरसिंह के पार्थिक शव के


बड़े भाई मास्टर बलबीरसिंह                  पास बैठे उनके परिजन व मित्र।


एवं उनकी पत्नी।


 


 बदायुं जिला की बिल्सी तहसील के ठाकुर गंगा सिंह तोमर के दो बेटे थे। बड़े बेटे बलवीर सिंह बिल्सी के एन.ए. इन्टर कॉलेज में कला है अध्यापक थे, जो अपनी कला के लिए दूर-दूर तक मशहूर थे। किसी को देखकर उसका चित्र हूबहू  स्कैच कर देना, उनके बांये हाथ का खेल था। चूंकि बलवीर सिंह कॉलेज में कला अध्यापक थे, इसलिए उनको मास्टर बलवीर सिंह के नाम  से जाना जाता था । एक बार बदायूं जनपद के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट श्री दक्ष सिंह गहलोत मय पत्नी के एन.ए. इन्टर कॉलेज में पधारे थे ।मास्टर बलवीर सिंह ने जिला मजिस्ट्रेट का चित्र हूबहू स्कैच कर उनको दिखाया था। जिला मजिस्ट्रेट उनकी कला को देखकर इतने खुश हुए कि उन्होंने मास्टर बलवीर सिंह को .22 बोर की राइफल का लाइसेंस उसी समय मंजूर कर दिया । मास्टर बलवीर सिंह की कोई सन्तान नहीं थी। उनका भाई रघुवीर सिंह कक्षा चार पास पेशे से कृषक तो थे ही, साथ ही कारपेन्ट्री का काम भी करते थे। उस समय खराद की मशीनें नहीं होती थीं, सारा काम लकड़ी पर हाथ से किया जाता था। रघुवीर सिंह को इसमें महारात 8 हासिल थी। तत्कालीन समय में चलने वाली लकड़ी के पहियों की बैलगाड़ियों, रथ और रब्बों को बनवाने के लिए लोग दूर-दूर से उनके पास  आते थे। रघुवीर सिंह के पिता का देहान्त हो  चुका था। रघुवीर सिंह के दो पुत्र- बड़े महेन्द्र  प्रताप सिंह और छोटे जुगेन्द्र सिंह तथा दो पुत्रियां  धर्मवती देवी व निर्मला देवी थीं। इनमें महेन्द्र प्रताप सिंह की शादी हो गई थी ।बाकी तीनों बच्चे अविवाहित थे। रघुवीर सिंह की उम्र 35-36 वर्ष की थी कि टीबी के कारण लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में सन 1957 में उनकी मृत्यु हो गयी।


सन 1958 में बदायूं जनपद के थाना मुजरिया है और तहसील बदायूं के अन्तर्गत आने वाले गांव सिकन्दराबाद ,जो कि पूर्वोत्तर रेलवे के बितरोई रेलवे स्टेशन से लगभग पांच-छह किलोमीटर दूर एक ब्राह्मण परिवार में उदयवीर शर्मा के यहां एक बच्चे का जन्म हुआ। पिता ने उसका नाम है राजेन्द्र रखा। राजेन्द्र थोड़े बड़े हुए तो उनकी एक आदत बन गई थी कि जो उनके घर में आता था, वह उसके पैर छू लिया करते थे, बाहर से आने वाले राजेन्द्र को आशीर्वाद दिया करते थे,  जैसा कि लोग गांव में आज भी देते हैं कि बेटा खूब बड़े हो जाओ, खूब पढ़ो लिखो और अच्छी  सी बहू लाओ। जब वह बोलने लायक हुए तो वह कहने लगे कि मेरी बहू (पत्नी) तो बिल्सी में है, उसको लाकर दो, ठाकुर रघुवीर सिंह मेरा नाम था। राजेन्द्र के माता-पिता उनकी बातों से चौंक उठे। एक दिन उझानी शहर से बैलगाड़ी से  अनाज बेचकर जब गांव लौटे तो नन्हें राजेन्द्र ने अपने पिता से कहा कि तुम्हारी गाड़ी अच्छी नहीं है, हमारी गाड़ी अच्छी हैं । उदयवीर शर्मा ने हंस कर पूछा- तुम्हारी गाड़ी, कौन सी गाड़ी? तो राजेन्द्र ने कहा कि उनकी बैलगाड़ी बिल्सी  में हैं और इससे बहुत अच्छी है। उदयवीर शर्मा फिर से चौंक गये। राजेन्द्र ने बताया वह बढ़ईगीरी का काम करते थे और वह गाड़ी उन्होंने ही बनाई थी। राजेन्द्र ने कहा कि मास्टर बलवीर सिंह उनके दद्दा (भाई) थे। इसके बाद राजेन्द्र अक्सर अपने घर में अपने पूर्व जन्म के बारे में बताने लगे तो पिता उदयवीर शर्मा ने बिल्सी  के नारायन दत्त शर्मा को यह बात बताई, जो सिकन्दराबाद गांव के पड़ोस के एक गांव ज्योरा के साप्ताहिक बाजार में तम्बाकू बेचने जाते थे। उन्होंने उदयवीर शर्मा से कहा कि बिल्सी  में ज्यादातर ठाकुर लोग मुहल्ला नंबर 5 में ही रहते हैं और मास्टर बलवीर सिंह को कौन  नहीं जानता।  मैं उनसे बताऊंगा। नारायन दत्त शर्मा ने मास्टर बालवीर सिंह से कहा कि ज्योरा की बाजार में सिकन्दराबाद गांव के उदयवीर शर्मा मिले थे, उन्होंने बताया हैं कि उनका बेटा राजेन्द्र जो लगभग ढाई वर्ष का है, वह आपका नाम लेता है, कहता है कि मास्टर बलवीर सिंह उनके दद्दा  हैं । यह सुनकर मास्टर बलवीर सिंह ने अपने घर यह बात बताई और सिकन्दराबाद जाने का फैसला किया। वह एन.ए. इन्टर कॉलेज बिल्सी  के प्रधानाचार्य कल्यान राय उपाध्याय को साथ लेकर सिकन्दराबाद गांव पहुंचे। गांव में घुसते ही कुछलोग एक पाखड़ के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे, मास्टर बलवीर सिंह ने उनसे कहा कि हमने सुना हैं, इस गांव में किसी ने दुबारा जन्म लिया है और वह खुद को बिल्सी  का रघुवीर सिंह बताता है । यह बात वहीं पास में खेल रहे एक  बच्चे ने सुनी तो उसने मास्टर बलवीर सिंह की ओर देखा  और देखते ही वह बलवीर सिंह से लिपट  गया और कहने लगा कि दद्दा तुम आ गये। यही शागडी राजेन्द्र थे। बलवीर सिंह ने उसे गोद में उठा लिया और रोने लगे, राजेन्द्र भी रोने लगे। वहां भीड़ जुटने लगी। पाखड़ के बड़े पेड़ के ठीक सामने वाला घर राजेन्द्र का था । राजेन्द्र अपने दद्दा का हाथ पकड़कर अपने घर ले गये, जहां उनके पिता  उदयवीर शर्मा बैठे थे। पिता से राजेन्द्र ने कहा कि  मेरे दद्दा आये हैं, तो वह मास्टर बलवीर सिंह और श्री कल्यान राय उपाध्याय को अपने साथ लेकर अन्दर गये। मास्टर बलवीर सिंह ने कई सवाल अपनी जिज्ञासा शांत करने को पूछे, जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि यह राजेन्द्र के रूप में रघुवीर  सिंह ने ही पुनर्जन्म लिया हैं। यह बात सन 1960 की है । इसके कुछ समय बाद ही मास्टर बलवीर सिंह बैलगाड़ी से राजेन्द्र  के गांव पहुंचे । बैलगाड़ी में कुछ महिलाओं को एक प्लान के तहत बिठाया गया, जिन्होंने गांव में पहुंचकर लम्बे-लम्बे घूंघट  कर लिए थे। सभी को फाटक के अन्दर बिठाया गया और राजेन्द्र को बुलाया गया और उनसे कहा गया कि महिलाओं का घूंघट उठा कर देखो और बताओ कि तुम्हारी बह (पत्नी) कौन-सी हैं । राजेन्द्र एक-एक करके घंघट उठाकर देखने लगे और अचानक वह चौंक  कर बोले- यही है मेरी बाह । मास्टर बलवीर सिंह से राजेन्द्र के पिताजी ने पछा तो उन्होंने स्वीकार  किया। अपने विश्वास को और मजबूत करने के  लिए उन्होंने उदयवीर शर्मा को राजेन्द्र को साथ  लेकर बिल्सी  आने को कहा। मार्च 1961 में वो उस समय बैलों से चलने वाले रब्बा से आये । रास्ता भी राजेन्द्र बताते जा रहे थे। रब्बा जैसे ही मुहल्ले की मुख्य सड़क पर आया और ठाकुर श्योराज सिंह के दालान पर रुका तो राजेन्द्र के पिता ने अपने बेटे से कहा- जाओ, कौन-सा घर है बताओ। राजेन्द्र सीधे मास्टर बलवीर सिंह के मकान में प्रवेश कर गये और घर के अन्दर जाकर मकान में प्रवेश कर गये और घर के अन्दर जाकर उस कमरे के दरवाजे पर रुक गये, जहां रघुवीर सिंह रहते थे और सोते थे। कमरे के अन्दर जाकर अपनी चारपाई जो खुद उन्हीं ने बनाई थी, उस पर बैठ गये। अपने बड़े बेटे महेन्द्र प्रताप सिंह,  छोटे बेटे जुगेन्द्र सिंह एवं दोनों बेटियों धर्मवती एंव निर्मला देवी को उनके सामने लाया गया तो राजेन्द्र ने कहा कि ये मेरे बड़े बेटे प्रताप और छोटे बेटे जुगेन्द्र हैं और ये दोनों मेरी बेटियां हैं। मास्टर बलवीर सिंह ने तीन बन्दुक मुहल्ले में से मंगवाई और अपनी राइफल भी उनके बीच रख दी और राजेन्द्र से पूछा कि हमारी बन्दूक कौन-सी है, तो राजेन्द्र ने तुरन्त राइफल पर हाथ रख दिया । मास्टर बलवीर सिंह की पत्नी सामने आयी तो 'भौजी' कहकर उनकी गोद में जा बैठे। पूरा मुहल्ला आश्चर्यचकित था कि तभी राजेन्द्र ने मास्टर बलवीर सिंह से कहा- भइया, लाला के  यहां से जंजीर ले आना। पता चला कि रघुवीर सिंह ने अपनी पत्नी की जंजीर बिल्सी  में किसी लाला के यहां रखकर सौ रुपये ले लिये थे, यह बात रघुवीर सिंह की पत्नी सुनहरी देवी को पहले से पता थी। राजेन्द्र ने उसी जंजीर की बात कही थी। इसके साथ ही यह भी बताया कि भूसेवाली कोटरी  में मिट्टी के बर्तन में तांबे के सिक्के दबे हुए हैं । उसी समय उनकी निशान देही पर वह मिट्टी की हंडिया भी निकाल ली गई । इन घटनाओं से साबित हो चुका था कि रघुवीर सिंह ने ही राजेन्द्र के रूप में जन्म लिया है। राजेन्द्र तो अपने गांव सिकन्दराबाद चले गये, लेकिन नए रिश्ते भी बना गये। दोनों तरफ से एक दूसरे के यहां शादी विवाह एवं अन्य अवसरों पर आना जाना शुरू हो चुका था। बड़े भाई मास्टर बलवीर सिंह राजेन्द्र को हर वर्ष दो जोड़ी कपड़े बनवाया करते थे ।रघुवीर सिंह के बड़े बेटे महेन्द्र प्रताप सिंह की शादी तो उनके मरने से पहले ही हो चुकी थी लेकिन बेटे और दोनों बेटियों की शादी में राजेन्द्र को ससम्मान बुलावा जाता रहा और सभी शादियों में राजेन्द्र रघुवीर सिंह का फर्ज अदा करते रहे, इसके अतिरिक्त अन्य मौकों पर भी राजेन्द्र को उनके पिता के साथ बुलाया जाता रहा। रघुवीर सिंह के बड़े बेटे महेन्द्र प्रताप सिंह पुरानी यादों में खो जाते हैं, बताते हैं कि पिताजी (राजेन्द्र) का एक बार बिल्सी  आना हुआ था, मेरी पत्नी बिना चूंघट के खड़ी थीं तो पिताजी ने मेरी ताई (मास्टर बलवीर सिंह की पत्नी) से कहा कि भौजी देखो बहू ने मुझसे घूंघट  नहीं किया है । महेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि वह जब भी बिल्सी  आते थे, मेरी पत्नी उनके सामने कभी बिना परदे के  नहीं निकलती थी और बाकायदा पैर भी छूती थी। महेन्द्र प्रताप सिंह ने एक और घटना बताई। उन्होंने बताया कि पिताजी की मृत्यु हो चुकी थी। करीब दो-तीन महीनों के बाद एक रात लगभग  दो बजे ताउ मास्टर बलवीर सिंह को स्व. पिताजी  की आवाज सुनाई दी कि भइया तुम यहां सो रहे हो, खेत में खड़ा बाजरा चोर काट ले गये । ताउ हड़बड़ा कर उठे और जगाकर सबको बताया। वह राइफल और टॉर्च लेकर रात में ही बाजरे वाले खेत की तरफ गये और दूर से टार्च की रोशनी अपने खेत की ओर डाली तो देखा कि बाजरे के पेड़ ज्यों के त्यों खड़े हुए हैं । वह मन का वह्म समझ कर खेत तक नहीं गये और दूर से ही वापस आ गये। अगले दिन सुबह उनके पड़ोसी खेत का साझीदार मैकू उनके पास आया और बोला- मास्टर, तुम्हारे खेत का बाजरा रात में चोर काट ले गये। मास्टर बलवीर सिंह ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता हैं, मैं खुद रात वहां गया था और मैंने देखा था कि पूरा बाजरा खेत में खड़ा है तो मैकू ने कहा कि केवल बाल बालें ( भुढे) हंसिया से काटी हैं । बलवीर सिंह ने जाकर खेत पर देखा तो पाया कि चोरों ने बाजरे के पेड़ों की सारी बालियां काट ली हैं । महेन्द्र प्रताप सिंह बताते हैं कि पिताजी मरने के बाद भी वे हम लोगों को समय-समय पर आगाह करते रहे । घर में रहते कई बार ऐसा महसूस होता था कि वह बाहर से आकर अपने कमरे में घुस रहे हैं। उनकी पीठ वाले हिस्से की परछाईं घर में बहुत से लोगों को कई बार दिखाई देती। महेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने स्व. पिता रघुवीर सिंह के बारे में तो एक बात बहुत ही रोचक और ऐसी बताई कि उनकी बात पर विश्वास करना सहज नहीं है उन्होंने बताया कि राजेन्द्र ने अपने गांव सिकन्दराबाद में अपने माता पिता एवं अन्य लोगों को बताया था कि उन्हें पता है कि लखनऊ मेडिकल कॉलेज में मृत्यु के बाद उनकी जीवात्मा कैसे उनके घर तक आई । राजेन्द्र ने नन्हेंपन में बताया था कि एक आदमी लखनऊ से अपने घर जाने के लिए निकला और सामान की पोटली रघुवीर सिंह के बड़े भाई मास्टर बलबीर सिंह अपने स्कूल के प्राचार्य श्री कल्याणराय उपाध्यायको साथ लेकर राजेंद्र शर्मा से मिलने उनके गांव सिकंराबाद पहुंचे थे। दरवाजे के बाहर रखकर जैसे ही उसने दरवाजे को ताला लगाया, मेरी जीवात्मा उस पोटली के अन्दर चली गई। वह आदमी स्टेशन पर गया और उसने बरेली वाली गाड़ी में अपनी पोटली रख दी। उसके बाद बरेली से उसने इधर आने के लिए गाड़ी बदली और बितराई स्टेशन पर उतरा और पैदल चल कर सिकन्दराबाद गांव के अन्दर आकर धूप से थोड़ा सुस्ताने के लिए उस आदमी ने पोटली को सिर से उतार कर पाखड़ के पेड़ की छांव में रखा और खुद सुस्ताने बैठ गया । इस बीच मेरी जीवात्मा उस पोटली से निकलकर इस घर में आ गयी और तभी मेरा जन्म हुआ। इस बात की छानबीन और पक्का करने के लिए राजेन्द्र के पिता उदयवीर शर्मा ने अपने गांव सिकन्दराबाद एवं अन्य आसपास के गावों में पता किया कि कोई ऐसा आदमी हैं जो लखनऊ में नौकर हो तो पता चला कि सिकन्दराबाद का ही एक सफाई कमर्चारी है जो कि वहीं लखनऊ में ही रहता हैं और कभी कभार ही गांव आता हैं। उस आदमी से संपर्क कर पता किया तो उसने बताया कि हां, वह लखनऊ से अपने गांव आने के लिए पोटली लेकर आया था और गर्मी के कारण सुस्ताने के लिए पोटली को पंडित जी के घर के सामने पाखड़ के पेड़ के नीचे रखकर बैठ गया था। राजेन्द्र शर्मा इस समय ६०  वर्ष के हैं। सिकन्दराबाद गांव में अपने चार बेटे और दो बेटियों के साथ रहते हैं। एक बेटी का विवाह कर पाये हैं। राजेन्द्र शर्मा के गले में कैंसर है, जिसके कारण आवाज भी फुसफुसाहट जैसे स्वर में निकलती है। पिता उदयवीर शर्मा व मां का निधन हो चुका है । यह कहानी एक ऐसे पुनर्जन्म की है जिसे किसी पैमाने पर झुठलाया नहीं जा सकता।