आस्था का प्रतीक है पूर्वी दिल्ली का सिद्देश्वर महादेव मठ


रिपोर्ट - राजीव वर्मा 



पटपड़गंज औद्यौगिक क्षेत्र के सामने हसनपुर में डीटीसी बस डिपो के एक किनारे पर वर्षों पहले आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती थीं। सकरी सड़क के पास उस वक्त डीडीए इन्द्रप्रस्थ सोसायटीज के निर्माण में लगा था, जिसके कारण इस छोटी सी सड़क पर रात-दिन वाहनों का आना-जाना लगा रहता था। आये दिन दुर्घटनाओं से लोगों का वास्ता पड़ा रहता था। उन्हीं दिनों गांववालों को एक महात्मा ने बताया कि यहां सिद्देश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर है, उसकी उपेक्षा हो रही है। मन्दिर का जीर्णोद्धार किया जाना जरूरी है, तभी यहां दुर्घटनाओं का अन्त होगा। इसके बाद बाबा संत गिरिजी महाराज ने हसनपुर के निवासियों की सहायता से श्री सिद्देश्वर महादेव के उस प्राचीन मन्दिर के जीर्णोद्धार का काम सम्पन्न कराया। इसके साथ ही पूरे प्रांगण को एक आश्रम का रूप दिया गया। भक्तों के सह्योग से बाबा संत गिरिजी महाराज ने आश्रम में मन्दिर के पीछे खाली पड़े स्थान पर सिद्देश्वर बाबा गौशाला की स्थापना करके गौमाता की सेवा का काम भी आरम्भ कर दिया। इसके अलावा आश्रम में ही शनि देव के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा की गयी । इसके बाद इस चौराहे पर दुर्घटनाएं ना के बराबर होने लगीं। इसके बाद श्री सिद्धेश्वर महादेव समाधी मठ संन्यास आश्रम के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती चली या यूं कहें कि  उनके काम बनते चले गये और देखते ही देखते मन्दिर में भक्तों की संख्या बढ़ती चली गयी। भक्तों का कहना है कि इस मन्दिर में अगर कोई सच्चे मन से मांगे, तो उसकी मुराद जरूर पूरी होती है। यही कारण है कि यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले भक्तों में हिन्दू धर्म के साथ ही दूसरे धर्मों के लोग भी हैं। बाबा संत गिरिजी महाराज के बाद उनके शिष्य बाबा श्री महन्त रामेश्वरजी महाराज ने मन्दिर का पुनर्निमाण शुरू करवाया और हिमालय पर्वत के जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित ख़ीर भवानी के मन्दिर की स्थापना भी मन्दिर परिसर में कर दी। माता खीर भवानी के मन्दिर की स्थापना के बाद पूरी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रहने वाले कश्मीरी लोग भी इस प्राचीन मन्दिर में आने लगे और श्रद्धापूर्वक मन्दिर की सेवा करने लगे। इन्द्रप्रस्थ इलाके में तब तक डीडीए द्वारा स्थापित की गयी 200 से ज्यादा सोसायटीज के लोगों की श्रद्धा भी इस मन्दिर के प्रति बढ़ती चली गयी, जिसके बाद अनन्त श्री विभूषित महामंडलेशवर रामशरण गिरिजी महाराज ने इस मन्दिर के प्रांगण में साईं बाबा की भव्य मूर्ति की स्थापना का काम पूरा किया। देखते ही देखते हसनपुर स्थित सिद्धेश्वर महादेव के इस प्राचीन मन्दिर का स्वरूप ही बदल गया और वहां भक्तों की तादात लगातार बढ़ने हसनपुर गांव में सिद्देश्वर महादेव के जिस प्राचीन मन्दिर की गांववालों ने वर्षों तक सुध नहीं ली थी, जीर्णोद्धार होने के बाद उसका स्वरूप ही बदल गया। दरअसल आसपास स्थित सोसायटीज के निवासियों और भक्तों ने लगातार शनि मन्दिर और साई बाबा मन्दिर में नियमित आना शुरू किया और मन्दिर में भक्तों के लिए सुविधाओं का विकास होना शुरू हुआ। मन्दिर में नियमित आरती -भजन की व्यवस्था की गयी। प्रसाद वितरण और साप्ताहिक भंडारे के लिए लोगों ने अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दीं। महामंडलेशवर बाबा रामशरण गिरिजी कहते हैं, कि गौशाला की स्थापना के बाद से ही इस गौशाला में आवारा गौवंश को रखने की शुरूआत की गयी और स्वस्थ्य गायों को भी रखा गया। आज सिद्धेश्वर गौशाला में काफ़ी संख्या में गाय और गौवंश हैं, जिन्हें आसपास के लोग श्रद्धा के साथ चारा खिलाने आते हैं। बाबा रामशरण गिरिजी कहते हैं कि जगह की कमी के चलते वो गौशाला का विकास नहीं कर पा रहे हैं, लिहाजा सिद्धेश्वर गौशाला के लिए दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में ऐसी जमीन की तलाश की जा रही है, जहां मन्दिर गौशाला की स्थापना की जा सके। दिल्ली के हसनपुर का श्री सिद्धेश्वर महादेव समाधी मठ संन्यास आश्रम आज अपनी मान्यताओं और विशेषताओं के चलते दूर-दूर तक जाना जाता है। शनिवार और गुरूवार के दिन मन्दिर में नियमित भंडारे का आयोजन किया जाता है। श्री सिद्धेश्वर महादेव समाधी मठ संन्यास आश्रम की गद्दी पर वर्तमान में बाबा रामशरण गिरीजी विराजमान हैं। उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त है। उन्होंने इस मठ में महीनों घोर तपस्या की है, इसलिए इस आश्रम को आज तपोभूमि की संज्ञा भी प्राप्त हैबाबा रामशरण गिरिजी के केदारनाथ और ऋषिकेश में भी आश्रम हैं। वो तपस्या के लिए अक्सर केदारनाथ और ऋषिकेश जाते रहते हैं। हालांकि बाबा रामशरण गिरिजी ने स्वामी बाल योगी बनी ठाकुरजी महाराज उर्फ हितेश्वर गिरिजी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया हुआ है। महामंडलेश्वर बाबा रामशरण गिरिजी सिद्देश्वर महादेव का महत्व समझाते हुए बताते हैं कि सिद्देश्वर महादेव की स्थापना की कथा कुछ ब्राह्माणों द्वारा स्वार्थवश सिद्धि प्राप्त करने की दशा में नास्तिकता की ओर बढ़ने और फ़िर उनकी महादेव आराधना से जुड़ी महामंडलेश्वर बाबा रामशरण गिरिजी बताते हैं कि एक बार देवदारू वन में कुछ ब्राह्मण एकत्रित होकर सिद्धि प्राप्त करने हेतु तप करने लगे। किंतु सैकड़ों वर्षों बाद भी उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस पर वो ब्राह्मण बहुत दुखी हुए और और उनका ग्रंथों, वचनों पर से विश्वास उठने लगा। वो नास्तिकता की ओर बढ़ने लगे। तभी आकाशवाणी हुई, कि आप सभी ने स्वार्थवश एक दूसरे से स्पर्धा करते हुए तप किया है, इसलिए आप में से किसी को भी सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। काम, वासना अहंकार, क्रोध, मोह, लोभ आदि तप की हानि करने वाले कारक हैं। इन सभी कारकों से वर्जित होकर जो तपस्या करते हैं, उन्हें ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। तब वो सभी ब्राह्मणगण महाकाल वन में आये और सर्वसिद्धि देने वाले शिवलिंग के दर्शन किये, जिससे उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई। उसी दिन से वो शिवलिंग सिद्देश्वर के नाम से विख्यात हुआ। महामंडलेश्वर बाबा रामशरण गिरिजी कहते हैं कि भगवान ने पृथ्वी पर पहले सब प्राणियों की व्यवस्था की है, बाद में सांस देकर भेजा है।बस हमें तो उस प्रभु को एक पल के लिए भी विस्मृत नहीं करना है। सांस-सांस में उसे याद करना है उसी के लिए, उसी का नाम लेकर कार्य करना है। फिर देखना डूबती नैया  कैसे पार नहीं होती ?