निशक्तों को आलिंगन

रिपोर्ट -सतीश कौशिक 



राजनेताओं और बड़े-बड़े अभिनेताओं के पुरोहित पुलकित मिश्रा से मिलने वाला हर व्यक्ति यह अहसास करता है कि वो वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति से मिला है, जिसने कदम-कदम पर आशा के दीप प्रज्वलित किये हैं। अपने नाम की तरह कार्य करके वो लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। पुलकित महाराज का कहना है कि इंसान को भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। जो व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठता है, एक दिन उसका भाग्य भी बैठ जाता है। अतः कर्म करना और फ़ल की इच्छा न करना। जो व्यक्ति कर्म करता है और फ़ल की इच्छा नहीं रखता है, उसकी तमाम इच्छाएं खुद ब खुद पूरी हो जाती हैं।


लोगों को बड़े ही सरलता से सदमार्ग का रास्ता दिखाने वाले पुलकित महाराज का जन्म सन 1986 में उत्तर प्रदेश के बरेली के अनिरूद्धपुर में हुआ। पिता रामबहादुर मिश्रा पुलिस अधिकारी थे, जबकि माता सर्वेश मिश्रा गृहणी थी। बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण में आस्था रखने वाले पुलकित को नृत्य का शौक था, लेकिन पुलिस अधिकारी का घर होने के चलते परिवार का माहौल सख्त था। इसलिए परिवार के लोग पुलकित के नृत्य के ख़िलाफ़ थे, जिसके चलते मात्र 10 साल की आयु में पुलकित ने घर छोड़ दिया और जुट गये साधना में। वो पंडित बृजु महाराज और राममोहन महाराज की शरण में गये और उनसे शिक्षा दीक्षा ली। पुलकित ने कत्थक में एमए किया और रामचरित मानस पर शोध किया। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन को समाज के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने आलिंगन वेलफेयर एसोसिएशन का गठन किया और इस मंच को उन्होने सेवा का माध्यम बनाया एवं हजारों जरूरतमंदों की मदद व पालन पोषण किया।  वर्तमान समय में आलिंगन संस्थान में ४५ बच्चे कुष्ठ रोगी हैं। ३५ बच्चे अनाथ हैं, जबकि १८ बच्चे दिव्यांग हैं, जिनका ख्याल पुलकित महाराज अपने बच्चों की तरह रखते हैं।


पर्यावरण के प्रति पुलकित महाराज जागरूकता अभियान चलते हैं। वो कहते हैं की पेड़ -पौधों से हमारा जीवन है। अगर पेड़ -पौधे नहीं बचेंगे , तो हम भी नहीं बचेंगे।  इसलिए हर व्यक्ति को न केवल पैर लगाने चाहिए , बल्कि प्रकृति से प्रेम भी करना चाहिए। वो स्वयं भी अब तक 10 हजार से ज्यादा पेड़ लगवा चुके हैं।


पुलकित महाराज लोगों को स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक करते हैं, साथ ही समय-समय पर चिकित्सा कैप भी लगवाते हैं। वो रक्तदान, पोलियो अभियान, राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के लिए भी लोगों को जागरूक करते हैं। वो स्वयं भी कई बार रक्त दान कर चुके हैं।


पुलकित महाराज कला और संस्कृति के  भी प्रोग्राम करवाते रहते हैं। वो खुद भी बड़े कलाकार हैं उन्होंने गायन, वादन और नृत्य में नाम कमाया है। उन्होंने अपने कला मंच से बड़ेबड़े कलाकार दिये हैं। वो हमेशा कलाकारों की मदद के लिए आगे रहते हैं।


पुलकित महाराज धर्म रक्षक के रूप में हमेशा आगे खड़े रहते हैं। वो सनातन धर्म का ना केवल प्रचार करते हैं, बल्कि समाज में सनातन धर्म के प्रति जागृति भी लाये हैं। वो शायद ऐसे पहले संत हैं, जिन्होंने कारगिल और लद्दाख़ जैसे दुर्गम इलाकों में जाकर जवानों का हौसला बढ़ाया। पुलकित महाराज कहते हैं कि ज्ञान का दान सर्वश्रेष्ठ दान है। ज्ञान का दान परम तप है। यदि आपने किसी की धन से मदद की है या दान में धन दिया है, तो लेने वाला उसका प्रतिदान करना चाहता है। साधारण आदमी आपको भला आदमी मानता है, इज्जत देता है, कुछ दिनों तक आपको याद रखता है, जबकि स्वाभिमानी आदमी आपका उधार चुकाने का प्रयास करता है। यानि दृव्य दान का प्रभाव क्षणिक है। परन्तु ज्ञान दान की स्थिति दूसरी है। हम अपने अच्छे गुरुओं को हमेशा याद रखते हैं। उनका धन्यवाद मानते हैं। संतों द्वारा दिया गया ज्ञान तो जिंदगी बदल देता है। एक साधारण संत भी 100 साल तक अपना प्रभाव डालता है।ज्ञानी संत सदियों तक अपना प्रभाव डालते हैं। वेद व्यास आज भी गीता भागवत से करोड़ों का उद्धार करते हैं। बाल्मीकि, तुलसीदास, कबीरदास, रहीम, महाराज भीष्मजी परमहंस हरिहर, मीरा आदि जन-जन के प्रेरणास्रोत हैं।


ज्ञान दान सब कर सकते हैं। कुछ ना कुछ जानकारी, विशेष ज्ञान, विशेष अनुभव हर एक के पास है, उसे दीजिए। ज्ञान देने से बढ़ता है। ज्ञान दान से जहां समाज तरक्की करता है, तो वहीं स्वयं को भी मदद मिलती है, क्योंकि पढ़ाई जब तक पढ़ी जाती रहे, तभी तक सही रहती है।