'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' को साकार करतीं विजय लक्ष्मी


आज इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास अपनों के लिए वक्त नहीं है, तो गैरों की बात तो छोड़ ही दीजिये। लेकिन इसके विपरीत समाज में अब भी ऐसे लोग मौजूद हैं, जो अपना पूरा जीवन दूसरों के लिए न्यौछावर कर देते है, और इसी कारण आज भी इन्सानियत जिन्दा है। ऐसी ही एक महिला हैं हरियाणा के रोहतक के बोहर गांव की विजयलक्ष्मी, जो अपनी निस्वार्थ सेवा के लिए पूरे क्षेत्र में मिसाल बानी हुयी हैं। विजयलक्ष्मी के पिता पंडित मित्र दत्त कौशिक और माता सुषमा देवी समाजसेवी थे, जिसका व्यापक असर उनके जीवन पर पड़ादेश प्रेम और समाज सेवा की भावना उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली। उन्होंने अपने माता-पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए जरूरतमंदों की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। झज्जर के छारा कन्या विद्यालय में मुख्य शिक्षिका विजयलक्ष्मी हरियाणा के गांव गांव घूमकर 'बेटी बचाओ, बटी पढ़ाओ' का नारा बुलंद करती हैं। जिस हरियाणा में लिंग अनुपात पूरे देश में सबसे ज्यादा है और जहां लड़की के पैदा होने पर कई बार उसकी मां को तरह तरह के तानों से गुजरना पड़ता है, उस राज्य में विजयालक्ष्मी ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा बुलंद किया। इसके लिए उन्हें कई दुष्वारियों का सामना भी करना पड़ा। लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ी, लेकिन विजयलक्ष्मी ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार महिला उत्थान के कार्य करती रहीं। वो चौपालों के जरिए, नुक्कड़ नाटकों के द्वारा लोगों को समझाती हैं कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं है। हरियाणा कीही बेटियों ने देश ही नहीं, विदेश में भी लगभग हर क्षेत्र में परचम लहराया है। अगर बेटी नहीं होंगी, तो आगे पीढ़ी कैसे बढ़ेगी। वो लोगों को समझाती हैं कि कुछ रुढ़िवादी, दकियानूसी सोच वाले लोगों के कारण ही आज राज्य में सबसे ज्यादा लिंग अनुपात है। इसी कारण आज राज्य के बहुत से युवा तो कुंवारे घूम रहे हैं या फ़िर उन्हें दूसरे राज्यों-देशों से दुल्हन लानी पड़ रही हैं। विजयलक्ष्मी लोगों से कहती हैं कि इंसान सेवा के लिए बना है। सभी को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और कठिन परिस्थितियों में भी घबराना नहीं चाहिए। खुद भूखी रहकर दूसरों को खिलाने वाली विजयलक्ष्मी कहती हैं कि जो दूसरों को खिलाएगा, वो हमेशा खिलखिलाएगा। अगर आप दूसरों की मदद करोगे, तो भगवान आपके तमाम कार्य खुद व खुद ठीक कर देगा। वह खुद को इसका जीता जागता उदाहरण मानती हैं। उनके पति अश्वनी कुमार जहां दिल्ली में शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं, वहीं बेटा नीतिश दिल्ली गृह मंत्रालय में अपनी सेवाएं दे रहा है। वो लोगों से आह्वान करती हैं कि जब भी बीमारी, आर्थिक समस्या या किसी हानि का मुकाबला करें, तो हम जाने-अनजाने में पाप भी कर सकते हैं। ऐसे समय में हमें सोचना चाहिए कि यह कठिनाइयां चमकदार आकाश में क्षणिक बादलों की तरह हैं। हमारी असलियत ज्योत और प्रेम है। जब हम संसार के क्षण भंगुर पदार्थों से जुड़ जाते हैं, तो हमें दुख होता हैलेकिन जब हम यह अनुभव कर लेते हैकि बाहरी घटनाएं सपने की भांति हैं। क्षणिक और अस्थाई नाटक की तरह हैं, तो हम दुख और निराशा से ऊपर उठ जाते हैं। जीवन में जब हमें उदासी मिले, तो हमें अपना आन्तरिक सामन्जस्य बनाए रखना चाहिए। जब हमें कोई दुर्भाग्य लगे, तो हमें ऐसे अवसरों की ओर भी देखना चाहिए, जब हम सौभाग्यशाली रहे थेजब हम असफ़ल हों, तो हम अपनी गलतियों से सीखें और तब तक कोशिश करते रहें, जब तक कि सफ़लता हाथ ना लगे। विजयलक्ष्मी का मानना है कि जब अपनी सोच को सकारात्मक रखेंगे, तो परिस्थितियां भी हमारे अनुकूल होती चली जाएंगी