अपने खस्ताहालात पर रो रही है मध्य प्रदेश की जेलें


रिपोर्ट - उदय प्रताप सिंह चौहान 


 



 मध्य  प्रदेश के सभी जिला कारागार ( जेल ) उपकारागार और केंद्रीय कारागारों में एक तरफ जहां सुविधाओं का घनघोर अभाव है, तो दूसरी तरफ अधिकांश जेलों में स्टाफ की बहुत कमी है। प्रदेश की अधिकांश जेलों की निर्माण आजादी से पूर्व हुआ था। आजादी से बाद प्रदेश सरकार ने जिन जेलों का निर्माण कराया, आज उन्हें रखरखाव की सख्त दरकार है। ऐसे में जेलों में एक तरफ जहां कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं का अभाव साफ दिखाई देता है, तो वहीं दूसरी तरफ जेलों में सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता साधन नहीं है।  अधिकांश जेलों में सीसीटीवी नहीं है। सुरक्षा प्रहरियों की भारी कमी है। जेल अधीक्षक और उप जेल अधीक्षक के पद खाली पड़े हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की जेलों में दो हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सभी जेलों की स्थिति कैदियों की क्षमता के मामले में बहुत बदहाल है। हालात यह हैं कि जेलों में उनकी क्षमता से ज्यादा कैदियों को रखा गया है। भोपाल जेल में जहां 220 कैदियों को रखे जाने की व्यवस्था है वहां 350 कैदियों को रखा गया है। इसी तरह भैरवगढ़ में 1210 कैदियों की क्षमता है, तो वहां पर 2298 कैदियों को रखा गया है। झाबुआ में 220 कैदियों को रखे जाने की व्यवस्था है तो वहां पर 300 से ज्यादा कैदी है। खंडवा में 168 कैदियों को रखे जाने की क्षमता के विपरीत वहां पर 600 कैदियों को रखा गया है। कनावटी में 378 कैदी रखे जा सकते हैं, तो वहां पर 464 कैदी रखे गए हैं। सेंधवा और बड़वानी के जेलों में भी क्षमता से कहीं ज्यादा कैदियों को रखा गया है। राज्य की एक जेल के वरिष्ठ अधिकारी नाम उजागर न करने की शर्त पर इस संवाददाता को बताते हैं कि भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट के मानकों के मुताबिक किसी भी जेल में कैदियों को न तो सुविधाएं मिल पा रही है और न ही कर्मचारियों को सही से काम करने का मौका मिल पा रहा है। कैदियों की क्षमता से ज्यादा होने पर उन्हें रखने और उनके रखरखाव पर समुचित ध्यान नहीं दिया जातादूसरी तरफ हुर जेल में चौबीस घंटे सुरक्षा को लेकर भारी उहापोह की स्थिति रहती है। खासतौर पर जिन जेलों में खूखार कैदी बंद हैं, वहां भी सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता नहीं है। मध्य प्रदेश सरकार जेलों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जेलों में सीसीटीवी लगाने वाली फाइल कई वर्षों से गृह मंत्रालय में धूल खा रही है। दूसरी तरफ जेलों में प्रहरियों सहित दुसरे कमचारियों की वर्षों से नियुक्ति नहीं हुई है। अधिकांश जेलों में उप जेल अधीक्षक ही कार्य कर रहे है। ऐसी स्थिति में राज्य की जेलों में कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है। सबसे दिलचस्प बात यह हैं कि दस वर्षों से भी लंबे समय से अधिकांश जेलों का स्टाफ नहीं बदला गया। राज्य सरकार की तरफ से प्रदेश की जेलों और उप कारागारों के मासिक निरीक्षण की भी कोई व्यवस्था नहीं है और तो और अधिकांश जेलों में कैदियों की दिनचर्या और मॉनीटरिंग की भी सही व्यवस्था नहीं है। राज्य की अधिकांश जेल जो पुरानी है उनकी दीवारें कम ऊंची हैं और ज्यादातर जेलों में तार की फेंसिंग नहीं की गई है। इस संवाददाता ने राज्य की एक प्रमुख जेल के प्रहरी से जब पूछा कि जेल में बने वॉच टावर पर क्या कर्मचारी तैनात रहते हैं, तो वह बोले कि वॉच टावर पर कहां से लोग रहेंगे। अंदर ही लोगों की भारी कमी है। वो कहते हैं कि जेलों में वायरलैस सिस्टम से लेकर मेटल डिटेक्टर और हाई मॉस्क लाइटों, साफ पीने केपानी तक की भारी दरकार है और आप वॉच टावर की बात कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में ऐसी कोई जेल नहीं है जिसे आदर्श जेल कहा जा सकता है। सभी जेलों में रसूखदार कैदियों को उनके मनमाफिक सामान उपलब्ध हो जाता है, मोबाइल फोन से लेकर बीड़ी सिगरेट तक कैदियों को आसानी से उपलब्ध हो जाती है। जेलों की बैरकों में कैदियों को सभी सुविधाएं मिल रही है जबकि दूसरे कैदियों को ढूंस-ठूस कर एक दूसरे के साथ रखा गया है। राज्य के गृहमंत्री बाला बच्चन कहते हैं कि जल्दी ही सभी जेलों में सुविधाओं को पूरा किया जाएगा और कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाएगा। मगर गृहमंत्री के आश्वासन के बाद भी अभी तक राज्य की जेलों के पुर्नर्निमाण था रखरखाव के बारे में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। काबिलेगौर हैं कि मध्य प्रदेश की जेलों में कुछ कार्य राज्य की नगर पालिकाओं के माध्यम से भी होता है मगर नगर पालिकाओं द्वारा अभी तक अपने शहरों की खस्ताहाल जेलों के बारे में कोई पहल नहीं की जा रही है। हालात इतने भयावह हैं कि अधिकांश जेलों में बिजली के पर्याप्त साधन नहीं है। उजाले की भरपूर व्यवस्था नहीं हैजेल के अंदर और बाहर भी लाइट के पर्याप्त इतंजामात नहीं है। जेल के बाहर लगने वाली हाईमॉस्क लाइटें नदारत है तो अंदर स्थिति और भी खराब है कैदी अंधेरे में रहते है और भीषण गर्मी में बिना पंखे के बैरकों में समय बिता रहे हैं। अधिकांश जेलों में मुलाकातियों और कैदियों के मिलने की व्यवस्था बाबा आदम के जमाने की है। कैदियों को उनके परिवार वालों से बातचीत करने में भारी दिक्कत पेश आती हैइस बारे में जब जेल अधीक्षक से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि क्या करें, खुले में कैदियों को मुलाकातियों से नहीं मिलवा सकते। बहरहाल मध्य प्रदेश की अधिकांश जेलों के नये सिरे से पुनर्गठन की सख्त दरकार हैजेलों में सुविधाओं के विकास और कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं सहित सुरक्षा व्यवस्था और पर्याप्त स्टाफ जब तक उपलब्ध नहीं होगा, राज्य की जेलों पर संकट बरकरार रहेगा।