'कर्म ही सफ़लता की कुंजी -राकेश जून

 




समाजसेवी राकेश जून से मिलने वाला हर व्यक्ति यह अहसास करता है कि वो वाकई एक ऐसे इंसान से मिला है, जिसने समाज में कदम- कदम पर आशा के दीप प्रजलित किये हैं। वह उन लोगों में शुमार है, जिन्होंने अपने रास्ते खुद तलाशे। अगर रास्ते नहीं मिले, तो स्वयं नये रास्ते बनाये। भाग्य से ज्यादा कर्म पर विश्वास करने वाले राकेश का मानना है कि जो व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठेगा, उसका भाग्य भी बैठ जाएगा। किस्मत भी कर्म करने वालों का साथ देती है। अतः आलस्य से बचो और सक्रिय रहो। वह बड़े ही जोश के साथ कहते हैं कि जो व्यक्ति साहस कभी नहीं छोड़ता, उसकी पराजय कभी नहीं होती और परमात्मा भी उसका साथ देता है। राकेश जून हमेशा आदमी का मूल्य उसके उत्साह, साहस व मेहनत से आंकते हैं। राकेश जून का मानना है कि जिस व्यक्ति में अपने काम के प्रति ईमानदारी, उत्साह, स्फूर्ति और लगन की भावना होती है, उसका महत्व हर जगह स्वीकारा जाता है। यह तमाम बातें राकेश जून पर बिल्कुल फ़िट बैठती हैं। उन्होंने उच्च शिक्षा के साथ-साथ जहां खेलों में भी अपने जौहर दिखाये, तो वहीं व्यवसाय में भी अपना एक अलग मुकाम हासिल किया। राकेश का कहना है कि उनकी सफलता में उनकी पत्नी शैलजा जून का अहम योगदान है। शैलजा जून ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया, तभी वो सफलता के पायदान चढ़ पाये । अपने बिजनस के साथ-साथ समाजसेवा में भी तल्लीनता से लगे रहने वाले राकेश जून बताते हैं कि उन्होंने अपनी मां वेद कौर और पिता श्री सुन्दर लाल जून को हमेशा ही समाजसेवा करते देखा। उनकी सीख थी कि जरूरतमंद की जरुरत पूरी कर दोवो भी ऐसे कि दूसरों को पता भी ना चले । आपको ईश्वर ने इस काबिल बनाया है, तभी आप यह काम कर रहे हो। हमेशा शांत रहने वाले राकेश के दिल में सभी प्राणियों के लिए सद्भाव है। वो रोज सुबह गौमाता की सेवा करने जाते हैं। अगर उन्हें कोई इंसान तो क्या जानवर, पक्षी भी घायल अवस्था में दिखाई देता है, तो वो उसका इलाज करवाते हैं। आज के युग में जहां इंसान को इंसान की परवाह नहीं है, उस दौर में अगर कोई व्यक्ति जानवरों, पक्षियों के प्रति इतनी हमदर्दी दिखाये, तो सहसा हीं कहा जा सकता है कि अभी इंसानियत जिंदा है। तभी यह दुनिया सलामत है। राकेश जून राज्य स्तर के खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वो राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेल पाये, इसका उन्हें हमेशा मलाल रहा। लेकिन उन्होंने अपने बेटे अनमोल को वो सभी सुविधाएं मुहैया कराई, ताकि वो उनके सपनों को जरूर पूरा कर सके। अनमोल ने भी उन्हें निराश नहीं किया। उसने ना केवल राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बैडमिंटन में अपनी अलग पहचान बनाई है, बल्कि कई मेडल भी जीते हैं। राकेश जून का सपना है कि उनका बेटा अनमोल देश की ओर से ओलंपिक गेम खेले और पदक लेकर आथे। अनमोल के अब तक के प्रदर्शन से उन्हें लगता है कि वो अपने देश और प्रदेश का नाम जरूर रौशन करेगा। राकेश जून को पता है कि चाहें आप कितने भी प्रतिभावान क्यों ना हो, लेकिन अगर आपको सुविधाएं नहीं मिलेंगी, तो आप कभी बड़े खिलाड़ी नहीं बन सकते । इसी को ध्यान में रखते हुए वो अपने क्षेत्र के प्रतिभावान खिलाड़ियों की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते । चाहें वो पैसे की बात हो य फ़िर गाइडेंस की, वो हमेशा खिलाड़ियों की मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं। उन्होंने खिलाड़ियों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बहादुरगढ़ शहर में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का बैडमिंटन हॉल तैयार करवाया है, ताकि प्रतिभावान खिलाड़ी वहां आकर अपना अभ्यास कर सकें। राकेश जून देश के युवाओं से आह्वान करते हैं कि युवा अनुशासन में रहकर कर्तव्य पालन करे । संकीर्ण व रूढ़िवादी मानसिकता को त्यागें एवं प्रगतिशील विचारधारा को अपनाएंनैतिक गुणों को आत्मसाद करें आज के युवाओं को अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखने की जरूरत है। युवा भविष्य में राष्ट्र निर्माण में नई संभावनाएं तलाशें, फ़िर देखें उन्हें कैसे सफ़लता नहीं मिलती। राकेश जून बहुत ही संजीदा होकर कहते हैं कि माना कि देश ने बहुत तकनीकी विकास किया है, लेकिन आतंकी, विघटनकारी, हिंसक गतिविधियों के साथ-साथ लोगों में घटते नैतिक मूल्य अखंड और सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधाएं हैं। राकैश इन तमाम समस्याओं का हल शिक्षा में मानते हैं। उनका मानना है कि शिक्षित इंसान हर पहल पर सोच विचार करके ही आगे बढ़ता है। अतः अगर हम आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित कर देंगे, तो महापुरूषों का यह देश फ़िर से सोने की चिड़िया कहलाने लगेगा