जुबान खोली तो तूफान खड़ा हो गया


हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने जब यह आरोप लगाया कि जाने-माने अभिनेता नाना पाटेकर ने उनका यौन शौषण किया, तो फिल्मी इंडस्ट्री में तूफान खड़ा हो गया । जब तक लोग इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते, उससे पहले ही बॉलीवुड और टेलीवीजन सीरियल की निर्देशक विंता नंदा ने भी यह आरोप जड़ दिया कि जानेमाने चरित्र अभिनेता आलोकनाथ ने उनका यौन उत्पीड़न किया। इसके बाद तो देशभर में हंगामा ख़ड़ा हो गया। तनुश्री दत्ता और विंता नंदा के बाद बहुत सी महिलाएं सामने आई और उन्होंने जोरदार ढंग से कहा कि उन्हें भी कामकाज के लिए यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। महिलाओं के आरोपों का सबसे बड़ा शिकार हुए केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर । उन पर उनकी ही कई पूर्व पत्रकार साथियों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए, जिसके बाद एमजे अकबर की कुर्सी चली गई। महिलाओं द्वारा आरोपों के बाद सोशल मीडिया और देश भर के समाचार साधनों में 'मी-टू' अभियान सिर चढ़ कर बोलने लगा और देखते ही देखते सुभाष घई, साजिद खान, अन्नू मलिक, कैलाश खेर जैसे लोग कटघरे में खड़े। हो गए। कई महिलाओं ने साहस दिखाते हुए अदालत में मामला दाखिल कर दिया और बहुत सी महिलाओं ने पुलिस में अपने यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई। मगर इन सब मामलों में एक बात सामान्य है कि सभी महिलाओं के आरोप दो से पांच वर्ष और दस वर्ष पुराने हैं। कानूनी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कानून की चौखट में यह मामले टिक नहीं पाएंगे और महिलाएं यौन शोषण के आरोप को सिद्ध नहीं कर पाएंगी। मगर दूसरी ओर देश में एक बड़ा तबका महिलाओं के साहस को सलाम कर रहा है कि भले ही कानून के सामने यह मामला हल्का साबित हो और टिक न पाए, मगर महिलाओं में कम से कम यह साहस तो आया, कि उन्होंने अपने साथ हुए यौन शोषण के मामले को उजागर करने का दम दिखाया। इस सारे मामले में केंद्र सरकार ने भी बेहद सख्त रुख अख्तियार किया और मंत्रियों के समूह की एक कमेटी बना कर देश में इस तरह के अपराध को रोकने के लिए कानून बनाने की पहल की है। हालांकि देश में महिलाओं के मान-सम्मान की रक्षा के लिए पहले से ही बहुत से कानून लागू हैं और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद देश के सभी निजी और सरकारी संस्थानों में महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विशाखा गॉइडलाइन्स के तहत  कानून मौजूद हैं। मगर महिलाओं ने विशाखा का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया। 'मी-टू' अभियान के बाद देश के उन संस्थानों में महिलाओं के साथ बेहतर व्यवहार किया जा रहा है, जहां पहले उन्हें परेशान किया जाता था या उनके साथ भेदभाव किया जाता था। भारत में महिलाओं को कदम कदम पर भेदभाव का शिकार होना पड़ता है मगर 'मी-टू अभियान से उन्हें नया आत्मबल मिला है। भले ही उनकी शिकायतों को अदालत ख़ारिज कर दे, मगर इस तरह के सामाजिक साहस से उन पुरूष के चेहरे से नकाब उतर गया, जो महिलाओं को अपना शिकार बनाते थे।