विशेष बच्चों का जीवन संवारने में जुटी एक संस्था




हमारे समाज में ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जो ना तो ठीक से बोल पाते हैं और न ही कुछ समझ पाते। हैं । मानसिक रूप से विकलांग होने के चलते इन विशेष बच्चों को समाज में जगह-जगह तिरस्कार झेलना पड़ता है, तो कई जगह उन्हें सहानुभूति की नज़र से देखा जाता है। कई बार बच्चों के परिवारवाले ही उनसे किनारा कर लेते हैं, जिसके चलते वो बाकी परिवार से अलग-थलग पड़ जाते हैं। कुछ परिवारों में तो यहां तक देखा गया है, कि मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के प्रति समाज के रूढ़िवादी नजरिये के चलते खुद उनके मां-बाप ही उनसे दूरी बना लेते हैं और उन्हें किसी अनाथ आश्रम या फ़िर उनकी नियती पर छोड़ देते हैं। लेकिन इसी समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने इस तरह के विशेष बच्चों को अपने पांव पर खड़ा करने का बीड़ा उठाया है, ताकि वो भी आत्मनिर्भर बन सके और साबित कर सके कि वो भी किसी से कम नहीं हैं। उन्हीं में से एक हैं हरियाणा के बाहादुरगढ़ की रहने वाली कुसुमलता, जो ऐसे ही मानसिक रूप से बिकलांग बच्चों के लिए एक स्कूल चला रही हैं, जहां उन बच्चों को अपनों की तरह प्यार और दुलार दिया। जा रहा है, साथ ही उन्हें उनकी रुचि और योग्यता के अनुसार तरह-तरह के वोकेशनल कोर्सेस करवाये जा रहे हैं, ताकि वो किसी पर बोझ ना बनकर, आत्मनिर्भर बन सके। बहादुरगढ़ की रहने वाली कुसुमलता साल 2009 में किसी काम से दिल्ली आर्थी, तो यहां उन्होंने मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का स्कूल देखा। समाजसेवा में रुचि रखने वाली कुसुमलता ने उसी समय यह ठान लिया कि वो अपने क्षेत्र में भी इस तरह का एक स्कूल खोलेंगी। इसके बाद उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों को अपने विचार से अवगत करवाया। सभी लोगों को उनका विचार पसंद आया और बाबा रामदास वेलफेयर एजुकेशन संस्था के बैनर तले आशा किरण स्कूल की नींव रखी गयी। शुरू में यह स्कूल शहर के लाइन पार इलाके में खोला गया था और इसमें कुछ ही बच्चे थे। लेकिन स्कूल के सदस्यों ने गांव-गांव जाकर मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की पड़ताल की और उनके अभिभावकों को आशा किरण स्कूल के बारे में बताया कि किस तरह वहां उनके बच्चों को प्यार दुलार और अपनेपन के अहसास के साथ ही अत्मनिर्भर बनाया जाता है। इस तरह स्कूल में आसपास के गांव के बच्चे भी आने लगे और धीरे-धीरे स्कूल की पहचान बनती गयी। इसके बाद बाबा रामदास एजुकेशन संस्था के बैनर तले चलने वाले आशा किरण स्कूल को समाज के कुछबुद्धिजीवियों और दूसरे लोगों का भी सहयोग मिलता रहा। बच्चों की संख्या को देखते हुए और अपनी विस्तार योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से स्कूल को बहादुरगढ़ के पटेल नगर के सेक्टर-6 में ले जाया गया, जहां आज करीब 300 बच्चों को इस स्कूल में तरह-तरह से शिक्षित किया जा रहा है। स्कूल में जहां बच्चों को संस्कार युक्त शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है, तो वहीं स्कूल में आधुनिक तकनीक के ऐसे उपकरण भी लगाये  गये हैं, जिनके माध्यम से ये बच्चे कम समय में  ज्यादा से ज्यादा सीख सके, ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके।  इसके लिए उन्हें नैतिक शिक्षा के साथ ही मानसिक रूप से भी मजबूत  किया जाता है और उन्हें समय समय पर समाजसेवा के कामों के लिए भी बाहर ले जाया जाता है, ताकि उनके अन्दर यह भावना भी विकसित हो सके, कि वो भी समाज का एक हिस्सा हैं और समाज के लिए वो भी अपना योगदान दे सकते हैं। वो किसी से कम नहीं हैं। कुसुमलता का कहना है कि मानसिक रूप से बिकलांग बच्चों के प्रति समाज को भी अपना नजरिया बदलना होगा। मंदबुद्धि होना एक अभिशाप नहीं चुनौती है, जिसे हर व्यक्ति, परिवार और समाज को स्वीकारना होगा। आमतौर पर देखा जाता है कि बच्चों के अपने परिवार वाले ही उनसे जाने-अनजाने में भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हैं। उन्हें परिवार के दूसरे बच्चों से कमतर आंका जाता है या फ़िर उनके प्रति सहानुभूति दिखायी जाती है, तो फ़िर दूसरे लोगों से क्या अपेक्षा रखी जाये। ऐसे अभिभावकों और समाज के दूसरे लोगों से मेरी अपील है कि वो ऐसे बच्चों के साथ भी दूसरे बच्चों की तरह ही नार्मल व्यवहार करें । उनसे किसी भी तरह की सहानुभूति न जतायें, बल्कि उनके अन्दर हिम्मत और हौसला पैदा करें, कि वो भी दूसरे बच्चों की तरह ही सब कुछ कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें वही प्यार और दुलार दें, जो वो दूसरे बच्चों को देते हैं, ताकि वो खुद को उपेक्षित महसूस न करें। हालांकि कुसुमलता के मानती हैं कि ऐसे बच्चों के प्रति धीरे-धीरे ही सही समाज का नजरिया बदल रहा है और अब बाहुत से अभिभावक मानसिक रूप से बिकलांग बच्चों को बोझ नहीं समझते। यह एक अच्छा और सराहनीय बदलाव है।