मनरेगा से विकास की नई इबारत लिखता पश्चिम बर्धमान



मनरेगा से क्षेत्र के विकास के साथ-साथ आम आदमी की जिंदगी कितने बोहतर ढंग से संवारी जा सकती है, इसका सबसे उत्तम उदाहरण पेश कर रहा है पश्चिम बंगाल का नवसृजित जिला पश्चिम बर्धमान, जहां जिला प्रशासन ने मनरेगा के तहत रिकॉर्ड रोजगार सृजित किये, जिससे ना केवल क्षेत्र का विकास हुआ, बल्कि आम आदमी की जिंदगी भी बेहतर हुई। लोगों को उनके द्वार पर रोजगार मिलने से उनका पलायन रुका, बेरोजगारी कम हुई, साथ ही जिले के लोगों की प्रति व्यक्ति आय में भी उल्लेखनीय बाढ़ौतरी हुई। जिला प्रशासन के प्रयासों की गूंज दिल्ली तक जा पहुंची, और जिले को एमओआरडी के तहत चुना गया। इसके साथ ही जिला प्रशासन को मनरेगा में बेहतर कार्य करने पर प्रतिष्ठित स्कॉच पुरुस्कार  से सम्मानित किया गया। जिले को यह पुरस्कार मनरेगा के तहत बेकार पदार्थ और बंजर जमीन को संपदा में तब्दील करने के लिए दिया गया है। 7 अप्रैल 2017 को जब बर्धमान को बांटकर पश्चिम बर्धमान के रूप में नया  जिला बनाया गया, तो जिला प्रशासन के सामने तमाम तरह की समस्याएं मुंह बाये खड़ी थी। जिले में पानी की कमी के साथ ही सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था का अभाव था। बंद पड़ी कोल खदानें लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रही थी। लोगों को मनरेगा के तहत कम ही दिनों रोजगार मिल पाता था, जिसके चलते काफ़ी लोग कोयला चोरी जैसे अनैतिक कार्य में लगकर अपनी गुजर-बसर कर रहे थे। जिले से पलायन बढ़ रहा था। लेकिन पश्चिम बर्धमान के जिला शासक शशांक सेठी के नेतृत्व में जिला कोयला चोरी जैसे अनैतिक कार्य में लगकर अपनी गुजर-बसर कर रहे थे। जिले से पलायन बढ़ रहा था। लेकिन पश्चिम बर्धमान के जिला शासक शशांक सेठी के नेतृत्व में जिला प्रशासन ने इन्हें चुनौती के रूप में लिया औरजिला बनने के तुरंत बाद विस्तृत कार्ययोजना तैयार की। उसमुक्ति परियोजना के द्वारा सूखा प्रभावित इलाकों में सिंचाई के लिए पानी की उप्लब्धता सुनिश्चित की गयी। साथ ही पानी का स्तर बढ़ाया गया। अजय, दामोदर और दूसरी सहायक नदियों की समृद्धि के लिए उपाय किये गथे। पानी के संरक्षण और संचयन के लिए वाटर शेड़ बनाये गये और यह सारे काम मनरेगा के तहत किये गये। मनरेगा के तहत बांजर पड़ी भूमि और धों का का निर्मा, बेकार पड़ी खदानों को विभिन्न उद्देश्यों के लिए विकसित किया गया। कई जगह बागवानी की गयी, तालाब बनाये गये, तटबंदों का निर्माण और मरम्मत तथा छोटे बांधों का निर्माण किया गया। किसानों को रेशम पालन और मछली पालन के लिए प्रोत्साहित और प्रशिक्षित किया गया गया। थर्मल प्लांट दामोदर वेली कॉरपोरेशन से निकलने वाली फ्लाई एश से ईंटों का निर्माण शुरु किया गया। इसके साथ ही बेकार पड़ी जमीन पर ईको पार्क विकसित ग्रामीण किये गये, ताकि उससे ना केवल बच्चों और ग्रामीणों को साफ़ और स्वच्छ वातावरण मिल सके, साथ ही वहां टूरिस्टों के आने से स्थानीय लोगों की आमदनी का जरिया बन सके। मनरेगा के तहत ज्यादा लोगों को रोजगार मिलने से क्षेत्र से लोगों के पलायन में कमी आथी है। साथ ही लोग कोथला चोरी जैसे अनैतिक काम को छोड़ने लगे हैं। बच्चों के स्कूल ड्रॉप आउट में कमी आयी है। लोगों की प्रति व्यक्ति आय में उल्लेखनीय बाढ़ौतरी हुई है। मनरेगा के जिला प्रभारी मानस पांडा ने बाताया कि नया जिला होने के बावजूद जिला शासक शशांक सेठी के नेतृत्व में गत वर्ष भी पश्चिम बर्धमान जिला ने राज्य में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 34 लाख श्रम दिवस रोजगार सृजन किया गया था, जबकि उससे पहले जिला क्षेत्र से केवल 24 लाख़ श्रम दिवस रोजगार सृजित हो पाया। था । मानस पांडा ने कहा कि वर्ष 2017-18 में मनरेगा के तहत प्रत्येक परिवार को साल में 50 दिन रोजगार मिला था। लेकिन इस बार 80 दिन रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है। जिले मे कुल 40 लाख श्रम दिवस रोजगार सृजित करने का लक्ष्य है। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जिला प्रशासन विभिन्न योजनाओं के तहत काम कर रहा है। ग्रामीण अंचल में मिलेनियम ड्रीम प्रोजेक्ट काफ़ी कारगर साबित हो रहा है। मिलेनियम ड्रीम प्रोजेक्ट से जिले के 8 प्रखंडों की सभी 62 ग्राम पंचायतों को जोड़ा गया है। प्रत्येक ग्राम पंचायत से 300 लोगों का चयन किया जा रहा है या 300 लोग किसी स्वयं सहायता समूह से जुड़े हो सकते हैं या आर्थिक रूप से पिछड़े या जॉब कार्डधारी भी हो सकते हैं। इन चयनित लोगों में से प्रत्येक को साल में 100 दिन कार्य मिले, ये सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके तहत सभी 62 पंचायतों में कुल 18600 लोगों को शामिल किया जाएगा। इस योजना में शामिल होने वाले लोगों को भूमि विकास कार्य, बकरी पालन, मछली पालन, पोल्ट्री शेड, नर्सरी, पौधारोपण आदि कामों में लगाया जाएगा।