पबजी खेलने से मना किया, तो बेटे ने कर दिया पिता का सर कलम -

रिपोर्ट -अब्दुल ज़मीर 


डिजिटल बर्ल्ड का गेम है पबजी , जिसका बुखार आजकल युवाओं और बच्चों के सिर चढ़कर बोल रहा है। पबजी गेम के चलते ना केवल बच्चे इसके आदी हो रहे है, बल्कि हिंसक भी बन रहे है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में आये दिन इस गेम के आदी बच्चों और युवाओं के हिंसक रूप की कहानियां अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। इसका ताजा मामला सामने आया है कर्नाटक के बेलगाम शहर से, जहां एक व्यक्ति ने अपने बेटे को पबजी गेम खेलने से मना किया, तो उस कलयुगी बेटे ने अपने पिता को बेरहमी से मौत के घाट उतार डालाउस कलयुगी बेटे ने पहले तो अपने पिता की गर्दन पर चाकू से तब तक वार किये, जब तक वो ढ़ेर न हो गये। इसके बाद उस शैतान ने उनके पैर काट डाले।



कर्नाटक के बेलगाम के काकती गांव के रहने वाले २१ वर्षीय युवक रघुवीर कुंभर को पबजी गेम खेलने की लत पड़ चुकी थी। उसके पिता शंकरप्पा अक्सर उसे पबजी खेलने को मना करते। शंकरप्पा कुछ साल पहले ही पुलिस विभाग की नौकरी से रिटायर हुए थे। इस कारण अब उन्हें घर चलाने में भी दिक्कत आ रही थी । वो चाहते थे कि उनका बेटा रघुवीर कोई नौकरी या फ़िर ढंग का काम धंधा करे , ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके, लेकिन रघुवीर का ज्यादातर समय पबजी खेलने में ही गुजर जाता। इसके तंग आकर एक दिन शंकरप्पा ने अपने बेटे रघुवीर का मोबाइल रिचार्ज करवाने से मना कर दिया। इस पर रघुवीर बौखला गया। उसने पहले तो अपने पिता को खूब खरी खोटी सुनाई, लेकिन जब पिता ने उसे उसके भविष्य की खातिर समझाने की कोशिश की, तो उसने अपने पिता से झगड़ा करना शुरू कर दिया। जब रघुवीर को उसकी मां ने रोकने की कोशिश की, तो उसने अपने मां को एक कमरे में बंद कर दिया और फ़िर अपने पिता की गर्दन पर चाकुओं से तब तक वार किये जब तक कि उन्होंने प्राण ना त्याग दिये। इतने भर से भी उस शैतान को तसल्ली नही हुई और इसके बाद उसने अपने पिता के पैर भी काट डाले। उधर पुलिस ने आरोपी बेटे रघुवीर को गिरफ़्तार कर लिया है और उसने आपना गुनाह भी कबूल कर लिया है। लेकिन यह घटना आगाह कर रही है कि बच्चों और युवाओं के मन मस्तिष्क पर डिजिटल गेम किस कदर हावी हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि ऐसे गेम से बच्चों और युवाओं को दूर रखा जाये, ताकि वो इनके आदी ना हो जाएं। बोक्स - पबजी गेम का क्रेज भारत ही नहीं पूरी दुनिया के बच्चों , युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। खाली समय में बड़ी संख्या में बच्चे इस गेम को खेलते हैं। धीरे धीरे उन्हें इसकी लत लग जाती है । एक समय ऐसा आता है कि वो अगर चाहें भी, तो इस गेम को नहीं छोड़ पाते हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ समय-समय पर इस गेम के प्रति अभिभावकों, बच्चों को आगाह करते रहे हैं। इस गेम में पैराशूट के जरिए १०० प्लेयर्स को एक आईलेंड पर उतारा जाता है, जहां प्लेयर्स को बंदूकें तलाशनी होती हैं। इसके बाद दुश्मनों को मारना होता है। गेम में जो आखिर में बचता है, वही विजेता होता है। इस गेम को ग्रुप बनाकर या अकेले भी खेला जा सकता है।